नाज़ है मुझे
कब चाहा है मैंने के तुझे सिर्फ अपना बनाऊ
मैं सिर्फ तेरी हूं ….इस बात पर नाज़ है मुझे
कब चाहा है मैंने के तुझे पास अपने बुलाऊ
मैं सिर्फ तेरे पास हूं इस बात पर नाज़ है मुझे
कब चाहा है मैंने के तेरे सपनो में रोज़ मैं आऊ
मैं सिर्फ तेरे सपने देखूं इस बात पर नाज़ है मुझे
कब चाहा है मैंने के तुझे दामन से अपने बाँध लूं
मैं सिर्फ तेरे पहलू में हूं इस बात पर नाज़ है मुझे
कब चाहा है मैंने के तुझ संग हँसी के पल बिताऊ
मैं सिर्फ तेरे दर्द बाँटू इस बात पर नाज़ है मुझे
कब चाहा मैंने के तेरे अधरों पर हसी बन बिखर जाऊ
मैं सिर्फ तेरीआँखों का पानी नहीं इस बात पर नाज़ है मुझे ।
प्रिया
बहुत शानदार कविता !