मुक्तक
उठती गिरती सागर की लहरों लेजाओ मेरा पैगाम
मन के मनके को छिपा सीप में ले जाओ प्रीतम के धाम ‘
प्रीत जता कर प्रीत निभाना जिनको कभी नहीं आया
मर्यादा पुरुषोत्तम तुमको सिया पुकारे आठों याम
लता यादव
उठती गिरती सागर की लहरों लेजाओ मेरा पैगाम
मन के मनके को छिपा सीप में ले जाओ प्रीतम के धाम ‘
प्रीत जता कर प्रीत निभाना जिनको कभी नहीं आया
मर्यादा पुरुषोत्तम तुमको सिया पुकारे आठों याम
लता यादव
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वाह वाह !
बहुत ही आभार आपका
मन के मनके को छिपा सीप में ले जाओ प्रीतम के धाम ‘
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी …बेह्तरीन अभिव्यक्ति
आदरणीय प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद