आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 33)

अब मैं परिणाम का इन्तजार करने लगा। विज्ञापन में उल्लेख था कि सितम्बर के अन्तिम सप्ताह में उन लोगों को परिणाम सूचित किया जायेगा, जिन्हें जापान यात्रा के लिए बुलाया जायेगा। मुझे अपने बुलाये जाने की क्षीण सी आशा थी, परन्तु परिणाम की जल्दी नहीं थी। मैं इस बारे में लगभग भूल ही गया था कि एक दिन जब मैं घर से दोपहर का खाना खाकर लौटा तो मेरे सहयोगी अधिकारी अनिल कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि तुम्हारे लिए जापान से फोन आया था। मुझे कुछ उम्मीद तो थी, परन्तु उस समय यही लगा कि अनिल मजाक कर रहा है। अतः मैं उसे टाल गया।

इसे मुश्किल से 5 मिनट ही बीते होंगे कि हमारे प्रशासन विभाग के प्रबंधक राठौर साहब ने मुझे बुलवाया। पता चला कि जापान से फिर फोन आया है। वे पूछ रहे थे कि क्या मुझे जापान से कोई पत्र मिला है। मैंने कहा ‘नहीं मिला’, तो वे कह रहे थे कि इन्तजार करो। आगरा के पते पर भी पत्र भेजा गया है 12 सितम्बर को। मुझे बहुत खुशी हुई तथा कुछ निश्चिन्त भी हुआ। तुरन्त दौड़कर घर गया और सबको यह समाचार सुनाया। पहले तो उनको भी विश्वास नहीं हुआ, परन्तु अविश्वास का भी कोई कारण नहीं था। अब हमें पत्र का इन्तजार करना था।

उस दिन 16 तारीख थी। 18 गुजरी, 19 गुजरी, 20 भी गुजर गयी। अब मैं घबराया। अगर पत्र न पहुंचा या लेट आया तो सब किया-धरा मिट्टी में मिल सकता है। अतः जैन साहब ने सुझाव दिया कि टेलेक्स करके पत्र फैक्स से मंगवा लो। मैंने 20 की शाम को जापान में श्री हिरानो के पास टेलेक्स करवा दिया कि कृपया यह पत्र फैक्स से भेज दीजिए। उम्मीद थी कि एक दो दिन में पत्र आ जायेगा।

दूसरे दिन हमने आफिस आते ही डाक घर में पूछा कि क्या हमारा फैक्स आया है। उन्होंने कहा- हाँ, 5-6 पेज हैं। हम दौड़े-दौड़े गये और पत्र ले आये, जिसमें 140/- रुपये लग गये। टेलेक्स करने में भी 56/- रुपये लगे थे। 200 रुपये खर्च करने पर भी हमें संतोष था कि पत्र समय से पूर्व मिल गया, क्योंकि अपनी स्वीकृति और लेख का सारांश भेजने की अन्तिम तिथि 25 सितम्बर थी। मैंने तुरन्त सारांश तैयार किया और एक ही पृष्ठ पर स्वीकृति तथा सारांश छपवाकर 22 तारीख को ही फैक्स से भेज दिया।

उस समय एक मजेदार बात हुई। उसी दिन मुझे पुत्ररत्न प्राप्त हुआ था। अतः मैं काफी व्यस्त था। फिर भी समय निकाल कर ठीक 4 बजे सायं फैक्स करने डाकखाने चला गया था और वहाँ से फैक्स करके लौट ही रहा था कि रास्ते में हमारे एक वरिष्ठ प्रबन्धक श्री अमृत लाल पाहवा जी स्कूटर पर मिल गये। दुआ-सलाम के बाद उन्होंने बताया कि अभी-अभी जापान से फोन आया है कि तुम्हारा फैक्स पहुँच गया। मुझे खुशी हुई और आश्चर्य भी कि वे इतने तेज हैं। शायद यही उनकी प्रगति का राज है।

अब मुझे टिकट का इन्तजार करना था तथा वीसा भी बनवाना था। पासपोर्ट मेरे पास था ही। अतः मैं निश्चिन्त होकर उनके अगले पत्र/टिकट का इन्तजार करने लगा। इन्तजार करते करते 14 तारीख आ गयी। अब मैं घबराया। उनका दो बार फोन आया कि हमने 9 अक्टूबर को पत्र भेज दिया है। मैं समझ गया कि अगर इसी के भरोसे बैठा रहा तो मैं जा ही नहीं सकूँगा, क्योंकि यात्रा 20 तारीख की थी और पत्र के 24-25 से पहले पहुंचने की कोई सम्भावना नहीं थी। अतः मैंने टेलेक्स कराया कि यह पत्र भी फैक्स से भेज दें।

श्री हिरानो, जो यह कार्य देख रहे थे, बहुत सज्जन व्यक्ति हैं। उन्होंने तुरन्त फैक्स में कोशिश की परन्तु हमारे डाक घर की फैक्स मशीन ही खराब हो गयी। मैं फिर हताश होने लगा। तभी जैन साहब फिर मदद को आये। उन्होंने बताया कि पास में ही एक प्राइवेट कम्पनी में फैक्स मशीन है। परन्तु वे स्वयं उस कम्पनी का नाम भूल गये। वे नयी टेलीफोन डायरेक्टरी में ढूँढ़ने लगे, क्योंकि उन्होंने वहीं कहीं पढ़ा था। मेरे सौभाग्य से उस कम्पनी का नाम पता चल गया। हमने वहीं जाकर फिर टेलीफैक्स भेजा कि पत्र उनके फैक्स नम्बर पर भेज दें। हम लौट कर आफिस में आये ही थे कि उस कम्पनी के फोन-पर-फोन आने लगे कि आपका पत्र आ गया है और आ रहा है। मैंने तुरन्त 100-150 रुपये हाथ में लिये और जैन साहब के साथ गया। वहाँ हमें 6 पृष्ठ का एक पत्र मिल गया जो 180 रुपये देने पर प्राप्त हुआ।

उस पत्र में सारी जानकारी थी और लिखा था कि वीसा के लिए दिल्ली में जापानी दूतावास से तथा टिकट के लिए दिल्ली में ही एअर इण्डिया से सम्पर्क कर लूँ। उस दिन 15 तारीख थी और मेरे सौभाग्य से मैंने 16 तारीख को आगरा जाने के लिए डीलक्स (पूर्वा एक्सप्रेस) में पूरे परिवार के साथ आरक्षण करवा रखा था। अतः यही तय हुआ कि बाकी सब लोग टूँडला उतर कर आगरा चले जायेंगे और मैं उसी गाड़ी से सीधा दिल्ली जाऊँगा।

ऐसा ही किया गया। 17 अक्टूबर को मैं 11 बजे दिल्ली पहुंचा और सबसे पहले मैं जापानी दूतावास गया। वहाँ वीसा का फार्म भरा। वे कह रहे थे कि 19 को आना। मैंने कहा कि मुझे आगरा से आना पड़ेगा, तो वे स्वयं बोले कि आज शाम को 4 बजे आकर ले जाना। मैं खुश हुआ। ईश्वर को और उन्हें भी धन्यवाद दिया तथा एअर इण्डिया के आॅफिस में पहुंचा।

वहाँ हमारे प्रबन्धक (प्रशासन) श्री राठौर की श्रीमती जी आरक्षण विभाग में हैं। उन्हें फोन द्वारा पहले ही मेरे बारे में बताया जा चुका था। अतः मैं सीधा उन्हीं के पास गया। मैंने कहा- ‘मैं विजय कुमार सिंघल हूँ।’ इतना सुनते ही वे प्रसन्न हो गयीं। मैं उनके लिए पत्र भी लाया था तथा एक पत्र उनकी सहयोगिनी कु. सूसन मसीह के लिए भी था, जो राठौर साहब ने ही लिखा था।

वे मुझे उनके पास ले गयी और मेरी टिकट बनाने के लिए कहा। उन्होंने अपने कम्प्यूटर पर जांच करके बताया कि यद्यपि मेरा नाम उस उड़ान की सूची में है, परन्तु टिकट के बारे में सूचना नहीं मिली है। मैं समझ नहीं पाया कि वे क्या सूचना चाहते थे। पत्र में लिखा था कि यदि एअर इण्डिया को कुछ पता न हो तो जापान एअरलाइन्स से सम्पर्क करूँ। मैंने तब तक कुछ खाया पिया नहीं था। उसी समय तीन केले खाये, जिनसे कुछ आराम मिला।

जापान एअरलाइन्स और भी अँधेरे में था। उन्होंने मुझे अल इटालिया (इटालियन एअर लाइन्स) के पास जाने के लिए कहा कि शायद उनके पास सूचना हो। उनका आॅफिस पास में ही था। मैं वहाँ गया, तो वहाँ एक सुन्दर सी लड़की ने मेरी बात समझकर बताया कि मेरी सीट एअर इण्डिया के साथ ही बुक है, वहीं से टिकट मिलेगी। उसने अपने कम्प्यूटर से वह सूचना छपवा कर भी दी।

मैं उस कागज को लेकर इस उम्मीद से एअर इण्डिया के पास आया कि अब तो टिकट मिल ही जायेगी। परन्तु वहाँ जाकर मुझे आश्चर्य हुआ, जब श्रीमती राठौर ने कहा कि यह तो वही सूचना है, जो सवेरे थी। अब मैं झुँझलाया। मैंने कहा – इसमें कमी क्या है? तब उन्होंने बताया कि वास्तव में पी.टी.ए. की कमी है। यह पेड टिकट एडवाइस (Paid Ticket Advice) का संक्षिप्त नाम है। इस सूचना के पहुँचने का अर्थ होता है कि टिकट के लिए भुगतान कर दिया गया है। यह एअर इण्डिया के जापान आॅफिस से आना चाहिए था। श्रीमती राठौर ने बताया कि हो सकता है वह कानपुर पहुँच गया हो। तब मैंने उनसे कानपुर बात करने के लिए कहा। वे तैयार हो गयीं और काल बुक करने चली गयी। वे यहीं गलती कर रही थीं, क्योंकि पी.टी.ए. वास्तव में वाराणसी में था, जबकि श्रीमती राठौर कह रही थीं कि वह कानपुर में होना चाहिए। यदि वे पहले ही दिन यह कह देतीं कि यह वाराणसी में हो सकता है, तो मैं उसी दिन पी.टी.ए. मँगा देता।

कानपुर से पता चला कि उनके पास कई पी.टी.ए. बिना कार्यवाही के पड़े हुए हैं। उनमें मेरा ढूंढ़कर बतायेंगे। मुझे बड़ा गुस्सा आया। सबसे पहले मैंने डाकखाने (ईस्टर्न कोर्ट) जाकर जापान में श्री हिरानो को टेलेक्स किया कि एअर इण्डिया पी.टी.ए. मांग रही है। लौट कर एअर इण्डिया आया, तो कानपुर से कोई सूचना नहीं आयी थी।

मुझे उसी दिन आगरा लौटना था तथा वीसा भी लेना था। उन्होंने मुझे 4 बजे बुलाया था, परन्तु मैं वीसा के लिए 5 बजे पहुंच पाया। तब तक उनका आॅफिस बन्द हो गया था। अतः मैं 19 तारीख को पुनः आने का निश्चय करके आगरा गया।

18 तारीख को मैंने श्री हिरानो को फिर टेलेक्स किया और आगरा तथा दिल्ली का एक-एक फोन नम्बर दिया, जहाँ वे मुझसे सम्पर्क कर सकते थे। उसी दिन उनका फोन आ गया कि तुम्हारा टिकट पक्का हो गया है और दिल्ली जाकर ले लो। तब मेरी मम्मी ने कहा कि एक बार और दिल्ली चला जा। टिकट मिल जाये तो ठीक है, नहीं तो भाड़ में गया जापान। मैं भी इससे सहमत था।

(जारी…)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

9 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 33)

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद!

  • विजय भाई , आप का तो किस्सा ही और था लेकिन जो मेरे साथ हुआ वोह भी कभी वक्त आने पर लिखूंगा . पासपोर्ट और इंग्लैण्ड की सीट के लिए मुझे और भी बहुत कष्ट उठाने पड़े थे . आप की यात्रा पड़ कर मुझे अपना वोह ज़माना याद आ गिया जब कि मैं तो उस वक्त १९ वर्ष का था . आगे के लिए इंतज़ार ………………

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, भाई साहब. मेरा अनुभव तो था ही, मैं आपका अनुभव भी जानना चाहूँगा. आप अवश्य लिखना.

    • विजय कुमार सिंघल

      बहुत बहुत धन्यवाद, मदन मोहन जी.

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपकी जापान यात्रा की आंतरिक भागदौड़ व कष्टपूर्ण तैयारी का रोचक वृतांत पढ़ा। आपने तब निबंध के चयन में जो सफलता प्राप्त की उसके लिए बधाई देने का दिल कर रहा है। बधाई स्वीकार करें। अब लगता है कि सभी समस्याएं हल हो गई हैं और आगामी किश्त में कुछ और जानकारियों के साथ जापान यात्रा की तैयारियों वा वायुयान से यात्रा का वर्णन पढ़ने को मिलेगा। हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार मान्यवर. आगे का वर्णन रोचक ही नहीं रोमांचक भी है. पढ़ते रहिये.

      • Man Mohan Kumar Arya

        Dhanyawad Adarniya Shri Vijay jee .

        2015-04-10 15:07 GMT+05:30 Disqus :

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