कविता

तन और मन

भगवान ने तन दिया ,
भगवान ने मन दिया
तन अच्छा तो मन अच्छा
मन अच्छा तो तन अच्छा ,
दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं,
मन को अच्छा रखो’
अच्छे विचारों से,
मन को अच्छा रखो,
अच्छे संस्कारों से,
कुछ उपकार से,
और कुछ परोपकार से,
योग से, ध्यान से,
प्रभु भक्ति से, साधना से,
सबके लिए मन में,
शुभ हार्दिक मनोकामना से,
तन को अच्छा रखो,
नियमित दैनिक व्यायाम से,
संतुलित शाकाहारी आहार से,
सबसे मधुर व्यवहार से,
स्वयं भी हंसो दूसरों को हँसाओ,
कभी ना किसी को रुलाओ,
आपके जो भी जीवन में हो रहा है,
सब उस प्रभु की ही करनी है,
उसकी हर करनी में ही’
सबको अपनी सहमति रखनी है,
जीवन में आने वाले, हर सुख दुःख में,
मानसिक संयम ज़रूरी है,
स्वस्थ तन और  मन के बिना
आपकी यह ज़िंदगी अधूरी है

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

One thought on “तन और मन

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे भाव !

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