चलो आज नव सूरज छूलें !
चलो आज नव सूरज छूलें !
बादल आँखों, भर सकते है
चिड़ियों के दल उड़ सकते है
जब नदी वृक्ष ले बहती है
हम क्यों पीछे रह जाते है ?
अपने ऊपर विश्वास करें
चलो आज नव संकल्प करें ।
प्राची सूरज को लाती है
संसार का तिमिर मिटाती है
आशाएँ देती है हजार
जीने की राह सिखाती है
हम क्यों खाक छानते हैं ?
अपने जीवन की सही राह चुनें
चलो आज नव निर्मित होलें
जब कीकर सुंदर लग सकता
तन्हा वन प्रहरी बन हँसता
आँगन के नीम झकोरों में
ममता का आँचल लहराता
हम क्यों उदास हो जाते है?
अपने जीवन में ज्ञान भरें
चलो आज नव काम करें
जब कविता रस दे सकती है
किशमत लकीर दे सकती है
अखियों से अश्रु छलक जाते
जब अपनों से मिल जातीं हैं
हम क्यों मायूस भटकते है?
अपने को खुद स्नेह करें
चलो आज नव आनंद भरें
जब मछली समुद नहा सकती
सपनों को रजनी बुन सकती
नव सोच में मिलता है सब कुछ
दुनिया मुट्ठी मेन भर जाती
हम क्यों निरीह हो जाते हैं ?
अपने ऊपर विश्वास करें
चलो आज नव आकाश उड़े ॥
कल्पना मिश्रा बाजपेई
बहुत अच्छा लगा यह गीत .
बहुत अच्छा गीत !