कुण्डली/छंद

कुंडली : ओलों की बरसात

ओलों की बरसात से फसल हुई है नष्ट         oley

देख फसल की दुर्दशा बहुत हुआ है कष्ट

बहुत हुआ है कष्ट सोचता कृषक बिचारा ,

बिना कनक के भगवन कैसे होय गुजारा

कुछ दमड़ी दे बैंक ने भेजी है सौगात

कैसी दे गई टीस ये ओलों की बरसात

 

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

3 thoughts on “कुंडली : ओलों की बरसात

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह अतीव सुंदर सृजन

  • लता बहन, देश का अन्दाता खुद भूखा मर रहा है, मैंने भी अपने दादा जी के साथ खेती की है , और मुझे याद है , जब फसल काटने के वक्त इतनी बारिश हो जाती थी कि दादा जी रोने लगते थे , और सारी मिहनत एक दो दिन में ही बेकार हो जाती थी . आज की खेती में खाद और पैस्तेसाइड पर इतने पैसे खर्च होते हैं कि फसल बर्बाद होने पर वोह किसान कर्जा उतार नहीं सकता और उस के लिए खुदकशी के सिवाए कोई चारा नहीं रहता.

  • जय प्रकाश भाटिया

    देश को रोटी खिलाने वाला,

    खुद रोटी को मोहताज़ है,

    यह कैसी व्यवस्था है,

    और यह कैसा समाज है,

    गरीब रोटी को तरस रहा है,

    अमीर रोटी को दुत्कार रहा है,

    अन्न जो जीव का जीवन है,

    कुदरत की मार से भी बेहाल है,

    नूडल,बर्गर,पीज़ा,सब मालामाल है,

    विदेशी भर रहे हैं अपनी तिजोरियां,

    और बेचारा “अन्नदाता ” कंगाल है

    –जय प्रकाश भाटिया

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