सबल
किसी सीमा को जब कोई,
तोड़ जाता है।
उसी वक्त भय का,
उदय हो जाता है।
यही भय द्वेष को अपने अन्दर,
पैदा कर जाता है।
द्वेष यहाँ पर हो जाता है आमंत्रित।
और वापस सीमा के अन्दर ले जाता है।
स्वयं मनुष्य,
सीमा के अन्दर रहने के लिए,
अपनी रक्षा के लिए,
सुरक्षा की दृष्टि से रक्षात्मक,
युक्ति लगाता है।
वही बचाव की चेष्टा,
तनाव पूर्ण स्थिति पैदा कर जाता है।
यहीं मनुष्य कमजोर बन जाता है।
अगर सुरक्षा के सभी प्रयास छोड़ दो,
अपनी गलतियों की सफाई मत दो,
बस उन्हें सहज स्वीकार करो,
आगे बढ़ने का प्रयास करों
उस समय बिलकुल सुरक्षा-विहीन होते हो।
उसी समय एकदम सबल हो।
———रमेश कुमार सिंह
बढ़िया कविता, अच्छे भाव !
धन्यवाद श्रीमान जी आभार आपका