मुक्तक (किस्मत)
मुक्तक (किस्मत)
रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं
प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं
मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
मुक्तक (किस्मत)
रोता नहीं है कोई भी किसी और के लिए
सब अपनी अपनी किस्मत को ले लेकर खूब रोते हैं
प्यार की दौलत को कभी छोटा न समझना तुम
होते है बदनसीब ,जो पाकर इसे खोते हैं
मुक्तक प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
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बहुत ख़ूब !
मुक्तक अच्छा लगा.