तमन्नाओं के बल पर
तमन्नाओं के बल पर
हो जाते खड़े महल
तो कोई झोंपड़ी न होती
गर उम्मीद से लहलहा
उठते हरे भरे खेत
तो भूखा कोई पेट न होता
तरसती कोई आँख न होती
अरमानों के सहारे गर
बस जाती दिल की दुनिया
टूटा कोई दिल न होता
तड़पती कोई रूह न होती
मिटी न दिल से गर
मानवता की परत होती
तो धर्म को लेकर
कोई मांग न उजड़ती
कोई गोद न सूनी होती
प्रीत पलती दिलों में गर
तो खड़ी न नफरत की दीवारें होती
होती कितनी ज़िन्दगी खुशहाल
जो इन प्रश्नों की टंकार न होती
हर प्रश्न से जुड़ा उतर गर होता
हर दिशा दिशाहीन न होती
हर दिशा दिशाहीन न होती ||
— मीनाक्षी सुकुमारन