पद्य कथा : गुरु–चेला और शालिग्राम
एक गुरु का था एक चेला ,
चंचल ,चतुर और अलबेला |
एक दिन गुरु चले देशाटन ,
सौंप गए चेले को आसन |
पत्थर काला ,गोल दिखाया
चेले को रहस्य समझाया |
ये हैं शालिग्राम हमारे ,
हम सब भक्तों के रखवारे |
रोज सुबह इनको नहलाना ,
रोली – चन्दन खूब लगाना |
पूजा से ये खुश होते है ,
फिर मनचाहा फल देते हैं |
चेले ने देकर आश्वासन ,
भेज दिया उनको देशाटन |
गुरु की सारी बातें गुनता ,
शालिग्राम की सेवा करता |
कुछ दिन मे वर्षा ऋतु आयी
सभी ओर हरियाली छाई |
एक जामुन का पेड़ वहाँ था
पके फलों से खूब लदा था |
काले रसगुल्लों से जामुन ,
मोह रहे थे चेले का मन |
खाने को जब जी ललचाया ,
उसने कई जुगाड़ लगाया |
पर चेले का हाथ न पहुँचा ,
क्योंकि पेड़ बहुत था ऊँचा |
गुरु की बात याद तब आई ,
शालिग्राम की दिया दुहाई |
प्रभुजी कुछ जामुन खिलवाओ
चेले को भी फल दिलवाओ |
लेकिन शालिग्राम न डोले ,
पत्थर के भगवान न बोले |
तब चेले को गुस्सा आया ,
आसन पर से उन्हें उठाया |
खींच – तान जामुन पर मारा ,
गिरा टूटकर गुच्छा सारा |
उसका हृदय बहुत हरषाया ,
छक कर मीठे जामुन खाया |
जामुन उसने खूब सँजोये ,
शालिग्राम कीचड़ मे खोये |
तब चेला पीछे पछताया ,
नाहक शालिग्राम गँवाया |
कैसे यह अपराध छुपेगा ,
जब गुरु जी को पता चलेगा ?
करूँगा गुरु से कौन बहाना ?
सोचे चेला बड़ा सयाना |
आखिर मे तरकीब भिड़ाया ,
शालिग्राम सा जामुन लाया |
आसन पर जामुन को रखकर ,
उस पर चन्दन लेप लगाकर |
चादर तान चैन से सोया ,
जामुन के सपनों मे खोया |
प्रात काल जब गुरु पधारे ,
अपने शालिग्राम निहारे |
शालिग्राम या जामुन देखा ,
सचमुच गुरु भी खाये धोखा |
असली समझ उठाकर लाये ,
डुबो – डुबो जल मे नहलाये |
शुरू किया जब मालिश करनी ,
शालिग्राम की बन गयी चटनी |
जब गुरुजी को गुस्सा आया ,
तब चेले ने पाठ पढ़ाया |
इसमे नहीं है मेरी गलती ,
गुरु आपने ही हद कर दी |
भिगो – भिगो कर हैं नहलाते ,
रोली – चंदन खूब लगाते |
सर्दी की सब कारस्तानी ,
गल गए प्रभु जी है हैरानी |
इन्हे विसर्जित करके जाओ ,
शालिग्राम नये ले आओ |
— अरविन्द कुमार ‘साहू’