कविता

मृत्यु

 

शमशान भूमि में किसी
छोटे बच्चे के खेल सी दिखती ज़िन्दगी
जो दोनों अँगूठों को
दोनों कनपटियों पर रख
अँगुलियों को तेजी से नचाते हुए
जीवन को चिढ़ाते हुए जीभ
शाश्वत सत्य सी मृत्यु जीत जाती है

जीवन में सहस्त्रों दुखों के हाथोंडों पे
लुहार की एक अंतिम चोट बन
जीवन का उपहास उड़ाती मृत्यु ..
कुछ यूँ कि आत्मा भी
हँसकर त्याग देती है देह

जीवन भर सहेजा जिस देह को
हर सुख देने की चेष्टा में
अनर्गल प्रलापों में बाँधा जिस देह को
एक लकड़ी की चिता पे
सफ़ेद कपडे में लिपटी वही देह
अग्नि में जल भस्म होने को आतुर है
परिचितों के मन में
घबराहट है,वेदना है
छटपटाहट है
छिन रहा है
बहुत-बहुत प्रिय
मूक दर्शक बने देख रहे हैं
विवश और असहाय
नियति को स्वीकार करने को बाध्य
कि संभावना ही नहीं
किसी के लौट के आने की
किंतु
मृत्यु नहीं है अंत जीवन का
बल्कि यह है पहला कदम
अमरता की ओर उनके लिए
जो अपने जीवन भर बाँटते, बिखेरते
खुशी, सुख और आनंद जीवन को।

__ प्रीति दक्ष

प्रीति दक्ष

नाम : प्रीति दक्ष , प्रकाशित काव्य संग्रह : " कुछ तेरी कुछ मेरी ", " ज़िंदगीनामा " परिचय : ज़िन्दगी ने कई इम्तेहान लिए मेरे पर मैंने कभी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा और आगे बढ़ती गयी। भगवान को मानती हूँ कर्म पर विश्वास करती हूँ। रंगमंच और लेखनी ने मेरा साथ ना छोड़ा। बेटी को अच्छे संस्कार दिए आज उस पर नाज़ है। माता पिता का सहयोग मिला उनकी लम्बी आयु की कामना करते हुए उन्हें नमन करती हूँ। मैंने अपने नाम को सार्थक किया और ज़िन्दगी से हमेशा प्रेम किया।

2 thoughts on “मृत्यु

  • Man Mohan Kumar Arya

    प्रशंसनीय, सराहनीय एवं अभिनंदनीय कविता। यह वैदिक सूक्ति इस समय याद हो आई। ‘मृत्योर्मा अमृतम् गमय।’ हे ईश्वर ! मुझे मृत्यु से अमृत अर्थात मोक्ष के ओर ले चलो। हार्दिक धन्यवाद।

    • प्रीति दक्ष

      itni sundar ukti sunane ke liye aapka tahe dil se shukriya man mohan ji..

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