मृत्यु
शमशान भूमि में किसी
छोटे बच्चे के खेल सी दिखती ज़िन्दगी
जो दोनों अँगूठों को
दोनों कनपटियों पर रख
अँगुलियों को तेजी से नचाते हुए
जीवन को चिढ़ाते हुए जीभ
शाश्वत सत्य सी मृत्यु जीत जाती है
जीवन में सहस्त्रों दुखों के हाथोंडों पे
लुहार की एक अंतिम चोट बन
जीवन का उपहास उड़ाती मृत्यु ..
कुछ यूँ कि आत्मा भी
हँसकर त्याग देती है देह
जीवन भर सहेजा जिस देह को
हर सुख देने की चेष्टा में
अनर्गल प्रलापों में बाँधा जिस देह को
एक लकड़ी की चिता पे
सफ़ेद कपडे में लिपटी वही देह
अग्नि में जल भस्म होने को आतुर है
परिचितों के मन में
घबराहट है,वेदना है
छटपटाहट है
छिन रहा है
बहुत-बहुत प्रिय
मूक दर्शक बने देख रहे हैं
विवश और असहाय
नियति को स्वीकार करने को बाध्य
कि संभावना ही नहीं
किसी के लौट के आने की
किंतु
मृत्यु नहीं है अंत जीवन का
बल्कि यह है पहला कदम
अमरता की ओर उनके लिए
जो अपने जीवन भर बाँटते, बिखेरते
खुशी, सुख और आनंद जीवन को।
__ प्रीति दक्ष
प्रशंसनीय, सराहनीय एवं अभिनंदनीय कविता। यह वैदिक सूक्ति इस समय याद हो आई। ‘मृत्योर्मा अमृतम् गमय।’ हे ईश्वर ! मुझे मृत्यु से अमृत अर्थात मोक्ष के ओर ले चलो। हार्दिक धन्यवाद।
itni sundar ukti sunane ke liye aapka tahe dil se shukriya man mohan ji..