बेटी हूँ मैं…
बेटी हूँ मैं
धरती का सौंदर्य और
हरित प्रकृति हूँ मैं
दहेज के दानवों से लेकिन ,
आज विचलित हूँ मैं ……..
सम्पूर्ण संस्कृति और नवसृजक
सभ्यता और सृष्टि का विस्तार हूँ मैं…
दहेज के दानवों से लेकिन
आज शर्मसार हूँ मैं……..
आत्मबल हूँ,संबल हूँ
कोमल भावनाओं का स्नेह मृदुल हूँ
दहेज के दानवों से लेकिन
आज चोटिल हूँ मैं ………..
आशीर्वाद हूँ,विश्वास हूँ
जननी हूँ,सुख-दुख की संगिनी हूँ ,,,
दहेज के दानवों से लेकिन
आज बनी कलंकिनी हूँ मैं……….
निम्नता,हीनता और क्षीणता का
एहसास कराकर,,
दहेज के चंद रुपयों से आँकी गयी
मेरी क्षमता……
पर,निरंतर प्रगति के पथ पर बढ्ने को
दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ……
हर चुनौतियों से लड़कर आगे बढ्ने को प्रयासरत
बेटी हूँ मैं ………….!!!
–– संगीता सिंह ‘भावना’