दोहे : रौशनी के क़तरे
घट में राखे राम जो , हनुमत वीर कहाय |
शबरी प्रेम में बावरी , जूठे बेर खिलाय ||
अश्क पीर और प्यास से, नैनन नीर बहाय |
तब ही जानी राम जी , अब मोहे मिल जाय ||
मन -मृग घूमे बावरा , मृग कस्तूरी चाह |
कस्तूरी नभ में छुपी , मृग को मिले ना राह ||
मेरा मुझमें कुछ नही , सब ही उसका ज्ञान |
जो है घट – घट में बसा , करले उसका ध्यान ||
इतना क्यूं इतराय तू , चलता सीना तान |
पल में मिट्टी होयेगा, तेरा सब अभिमान ||
दहशत का माहोल है, सुख हैं कोसों दूर |
नेताओं की मौज है , जनता दुःख से चूर ||
सच्चे को रोटी नहीं, झूठा मौज मनाय |
सच्चा कचरा बीनता, झूठा रबड़ी खाय ||
— ‘चंद्रेश’, नई दिल्ली
अच्छे दोहे !