आत्मकथा

स्मृति के पंख – 5

बैसाखी का दिन था, मरदान के पास डेरा बाबा कर्मसिंह पर मेला लगता था। भ्राताजी और कुछ साथी मेला देखने गए। मनीराम हमारे पड़ोस में ही रहते थे बिल्कुल सामने उनका मकान था। ईश्वर जाने मनीराम के दिल में भ्राताजी के खिलाफ कौन सी बात थी कि उसने इतना बुरा काम करने की ठान ली। वापसी पर शाम के वक्त एक जगह पुलिस ने घेरा डाल रखा था। भ्राताजी के पास बगैर लाइसेंस के पिस्तौल था। यह पूरी साजिश मनीराम की तरफ से बनाई गई थी। भ्राताजी ने मौके की नजाकत को समझा और पिस्तौल साथ वाले खेत में फेंक दिया। पुलिस ने खोज शुरू की और पिस्तौल मिल गया। भ्राताजी के साथ हरिकिशन तलवाड़ और बालमुकुन्द खन्ना भी साथ थे। भ्राताजी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बाकी तो मौके शहादत देने वाले कोई न थे। मनीराम ने एक मुसलमान को पेश किया। उसने हमारे खिलाफ बयान दिया। अगले दिन जमानत हो गई और केस चलने पर भ्राताजी को 2 साल की सजा हुई। जिसकी अपील की और जज ने अपील में बरी कर दिया।

हमारे दिल में उन लोगों के लिए फिर भी कोई बैर भाव न था। जवानी थी, गलती तो इंसान से हो ही जाती है। मनीराम का बड़ा भाई मक्खन लाल और चाचा हरी सिंह शर्मिंदा थे। कुछ अर्सा बाद मनीराम काफी बीमार हो गया। इलाज के बावजूद कोई आराम नहीं आ रहा था। हमारे गुरुजी देवकीनन्दन उन दिनों हमारे घर थे। सब गाँव वाले मत्था टेकने आते थे और लोगों में बड़ी श्रद्धा थी। मनीराम की माँ ने आकर गुरुजी के पांव पकड़ लिए और रोने लगी। गुरुजी ने पूछा क्या बात है? उसने बेटे की बीमारी का जिक्र किया। गुरुजी ने कहा जाओ, कोई बात नहीं है, ठीक हो जायेगा। और हमारे ही घर में गुरुजी ने दुर्गा माता का पाठ शुरू कर दिया। भोग वाले दिन उसकी हालत सुधरने लगी और चन्द दिनों में बिल्कुल ठीक हो गया। गुरुजी ने मनीराम की माताजी को कहा, “तुम और हमारे सेवक पड़ोसी हो, जो होना था हो गया। हमारे दिल में कोई रंजिश नहीं है। वैसे ही तुम पहले की तरह भाइयों की तरह रहो।” और फिर उन्होंने गुरुजी से और हमसे माफी मांग ली।

एक दिन तकरीबन शाम के करीब 6 बजे का टाइम था। पुलिस हमारे दरवाजे पर आ गई। एक इंस्पेक्टर व चार सिपाही थे। पिताजी को बुलाया गया। पिताजी ने पुलिस वालों को अन्दर आने के लिए कहा लेकिन इंस्पेक्टर ने कहा कि हमें बाहर ही बैठना है। कुर्सियां निकाल दो। हमनें 5 कुर्सियां बाहर निकाल दीं। इंस्पेक्टर एक पर बैठ गया बाकी कुर्सियों को उल्टा-पुल्टाकर देखने लगा। देखने के बाद इंस्पेक्टर ने कहा कि सेवाराम यह कुर्सियां चोरी की हैं। मेरे पास घर की तलाशी के वारंट हैं, लेकिन उसे तो सिर्फ कुर्सियां देखनी थीं। इसलिए अन्दर नहीं गया। तुमको हिरासत में ले लिया जाता है। बहुत कहने पर भी वह माना नहीं। यह मेरी ड्यूटी है, आपको छोड़ नहीं सकता। हां कल आपको अदालत में पेश कर दूँगा। आप जमानत पर घर आ सकते हैं और दूसरे दिन पिताजी की जमानत हुई।

इंस्पेक्टर अच्छा आदमी था। 2-3 महीना तक केस चलता रहा। कोई रास्ता हमारे बचने का नहीं था। माल मसरूका हमारे पास बरामद हुआ। न तो हमारे पास कोई रसीद थी, न गवाह कि ये कुर्सियां हमने फलां आदमी से ली हैं। इंस्पेक्टर से हमने कहा आपको यह तो पता है, हमने चोरी नहीं की और फँस गए हैं। ऐसे में कोई रास्ता हमें बताओ। उसने कहा सिर्फ एक रास्ता है, जिस ठेकेदार की यह चोरीशुदा कुर्सियां हैं, अगर अदालत में वह यह कह दे कि ये कुर्सियां मेरी नहीं हैं, तो आप बच सकते हैं। और कोई रास्ता नहीं है। तो मेरा केस खराब होता है, फिर भी आपकी शराफत के नाते मैं ऐसी बात उस ठेकेदार से करूँगा। अमीर आदमी है, उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। उसको सारी असलियत बताकर ऐसा करने लिए कहूँगा। पिताजी और भ्राताजी ठेकेदार को मिलने के लिए गए। कुछ इंस्पेक्टर ने भी कहा था, उस आदमी ने हमारा कहना मान लिया। वो सिर्फ यह चाहता था कि असली चोर का पता चल जाए, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते थे कि अपने गाँव के किसी आदमी का नाम लेना। हमने सिर्फ यही कहा वो कोई बाहर का आदमी था। और अगली पेशी पर ठेकेदार ने अदालत में इनकार कर दिया कि यह कुर्सियां मेरी नहीं है और पिताजी बरी कर दिये गए।

मेरे छोटे भाई रिखी राम का जन्म सन् 1924 में हुआ था। उसके मुण्डन संस्कार के लिए हरिद्वार गए। उसकी उम्र तकरीबन ढाई-तीन बरस की होगी। गंगा स्नान के बाद और मुण्डन संस्कार के बाद देहली घूमने चले गए। जिस जगह हम ठहरे थे, ऊपर की मंजिल में थे। नीचे बड़ा हाल था, वहाँ औरतों का जलसा था। तकरीर में बहनों से प्रार्थना की गई कि विदेशी माल का बायकाट करो। हमारे यहाँ अभी इतना प्रचार कांग्रेस का न था। इधर देखा दुकानों पर पिकेटिंग, नौजवान लड़कियां भी उसमें भाग ले रही हैं और खरीदारों को विदेशी माल लेने से रोकतीं। विदेशी माल के बायकाट का काफी जोर शोर देखा। जलसे, जुलूस, पिकेटिंग देहली में देखे। जलसा के दौरान औरतों के जलसे में जिन औरतों ने विदेशी साड़ी पहनी थी उसको दूसरी स्वदेशी साड़ी देकर वो साड़ी उतरवा लेते। स्वेदशी साड़ियों का ढ़ेर लगा था। मैं यह नजारा काफी गौर से देख रहा था। हैरानी की बात यह लगी कि किसी औरत ने विदेशी साड़ी देने से इनकार नहीं किया और वहाँ काफी ढेर विदेशी साड़ियों का लग गया। जलसे के खत्म पर सबने स्वदेशी का प्रण लिया कि हम स्वेदशी माल ही इस्तेमाल करेंगे और विदेशी साड़ियों की होली जलाई गई। इस वक्त मैंने विदेशी बोस्की की कमीज पहनी थी। मुझे अपने आप से नफरत होने लगी। ये औरतें इतनी कुर्बानी कर सकती हैं और हमें पता नहीं कि हमें क्या करना है। वहाँ मैंने भी प्रतिज्ञा कर ली कभी विदेशी कपड़ा न पहनूँगा और स्वदेशी ही सब कुछ इस्तेमाल करूँगा।

दूसरे दिन पिताजी बाजार से कुछ खरीदने निकले और भैया रिखीराम उनके पीछे निकल गए। पिताजी को पता नहीं है कि बच्चा आ रहा है। वो तो आगे बढ़ गए और बच्चा बाजार में खो गया। पूरा दिन और रात हमने कोई जगह नहीं छोड़ी। थाना रिपोर्ट की, महावीर दल आर्यसमाज मंदिर। जिसने जो जगह बतलाई वहाँ सूचना दी। रंग, हुलिया और उम्र बच्चे का दर्ज करवाया, पूरी रात परेशानी में गुजर गई। सुबह होने पर हम सब फिर एक दूसरी तरफ बाहर निकले कि शायद कहीं पता चल जाए। तकरीबन 10 बजे का टाईम था। एक आदमी उंगली लगाए रिखीराम के हमराह आ रहा है। पिताजी को पहले रिखीराम ने देख लिया और दौड़कर पिताजी के पास आ गया। उस आदमी ने पिताजी से पूछा कि यह आपका बच्चा है? पिताजी ने ‘हां’ में जवाब दिया, तो उसने कहा दफ्तर में दर्ज कराना होगा। दफ्तर नजदीक है, मेरे साथ आपने जाना होगा। दफ्तर किसी मुस्लिम सोसायटी का था। कुछ चन्दा भी पिताजी ने वहाँ दिया और कागजी कार्यवाही भी उन्होंने पूरी की। और हम खुशी-खुशी वापिस लौटे।

(जारी…)

राधा कृष्ण कपूर

जन्म - जुलाई 1912 देहांत - 14 जून 1990

3 thoughts on “स्मृति के पंख – 5

  • Man Mohan Kumar Arya

    आत्मकथा के आज के अंक में वर्णित घटनाएँ सराहनीय है। दो तीन दिन पहले वीर सावरकर जी पर एक लेख लिखा उसमे विदेशी वस्त्रो की होली जलाने के आंदोलन का जिक्र किया था। आज उसी से जुडी एक घटना को पढ़कर अच्छा अनुभव किया। धन्यवाद।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बस ऐसे ही इंसान एक दुसरे से इर्षा करते हैं . बिदेशी माल के बाईकाट का भी पता चला . पहले फिल्मों में ही देखते थे लेकिन राधा कृष्ण जी के द्वारा जान कर अच्छा लगा .

  • विजय कुमार सिंघल

    ईर्ष्यालु पडोसी इसी तरह लोगों को झूठे फंसा देते हैं.

Comments are closed.