लघुकथा

औलाद

“चार बहुए हैं पर घर में एक भी औलाद नहीं |आज होता तो निधि की विदाई में सारी रस्में वही निभाता | भगवान् को पता नहीं क्या मंजूर था जो घर में बेटियों की भरमार कर दी | बेटा एक भी ना दिया उसने |”
“सही कह रही हों आप बुआ पर कोई बात नहीं मेरा बेटा भी तो निधि का भाई ही हैं |” भतीजी सुमन बोली |
सुमन ने बड़े गर्व से बेटे को आवाज लगाई | पर ये क्या विदाई की रस्म तृषा निभा रही थी |
देखते ही दादी आग बबूला हो गयीं | तुझसे किसने कहा ये रस्म निभाने को ये भाई करता है बहन नहीं | चल हट परे वर्ना दादाजी ने देख लिया तो हंगामा खड़ा हो जायेगा |”
“अम्मा मैंने कहा इससे, आखिर ‘औलाद’ तो ये भी है न मेरी | लड़का हो या लड़की उतना ही दर्द, उतना ही समय और उतना ही प्यार | फिर ऐसे कैसे बुरा बर्ताव और क्यों ऐसा भेदभाव | ‘दूसरा’ निभाए इससे अच्छा है न अपना कोई निभाए | ” तृषा की माँ बोली
दादी को समझने में देर ना लगी और वह भी गर्व से बोल उठी अरे हां ये छवों बेटियां तो हीरा हैं हीरा | औलाद तो ये भी हैं |”
भतीजी का चेहरा तमतमा गया जैसे करारा तमाचा पड़ गया हो | भुनभुनाती हुई जलती भुनती रहीं तृषा को रस्म निभाते देख |

सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|

One thought on “औलाद

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा !

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