मुक्तक माणिक
प्रेम की अविरल बहेगी धार जब ;
खिलखिलायेगा सकल संसार जब ।
तब किसी मन में ना होगी कामना ;
सत्य से हो जाओगे दो चार जब ।
रास्ते हो जाय सब दुश्वार जब ;
पाओं चलने से करें इंकार जब ।
हैं सहारा एक बस परमात्मा ;
बेसहारा छोड़ दे संसार जब ।
दिल सुलगता रहा धुप में शाम तक ;
चाँदनी रातभर मुस्कराती रही ।
नींद रूठी रही ख़्वाब आये नही ;
आपकी याद रह – रहकर आती रही ।
उम्र बीत गई जी हजुरी में ;
हर बात गई अधूरी में
‘चंद्रेश’ इक पल भी सुकुन ना मिला ;
माँ खो गई सुई धागे की धुरी में ।
गर्दिशें , मुफलिसी तू जानता नही ;
इंसान को इंसान तू समझता नही ।
कुछ ख़ास ही होगी मजबूरिया तेरी ;
वरना खुदा को तू मानता नही ।
— चन्द्रकान्ता सिवाल ‘चंद्रेश’