मुक्तक/दोहा

मुक्तक : भाव हमारे चित्र तुम्हारे

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भाव हमारे चित्र तुम्हारे दोनों एकाकार हो गए

शब्दों की माला में गुँथ कर नीलकंठ का हार होगए

शिल्पी ने पाषाणों पर शिवशक्ति जीवन्त किये

अभिषेकित हो जल धारा से स्वप्न सभी साकार होगए

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उछलती झूमती नदी कितनी इठलाती है

वक्ष पर पत्थर के शिव शिव लिख जाती है

अचरज से मानव अवाक रह जाता

जब गूँज से बम भोले की घाटी गुँजाती है

लता  यादव 

 

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है