ग़ज़ल
किसी की तलाश में कही और गया है
लोग कहते है वो मेरा दर छोड़ गया है
गुरूर बहुत था उसे अपने हर सितम पर
मेरा हौसला उसे अंदर से तोड़ गया है
चाहा था उसने वह हो मेरा सरपरस्त
जानकार उसूल मेरे मुझसे मुह मोड़ गया है
मालूम नहीं है किसकी दुआओं का असर
मुझे खुशियों के मंज़र से जोड़ गया है
बेनक़ाब होता रहा दर्द की तरह दर दर
“मणि” के दर से वो कफ़न ओढ़ गया है
— मनीष मिश्रा ‘मणि’
बहुत अच्छी ग़ज़ल है.