कविता

मेरा मन सोचता है कि

मेरा मन सोचता है कि

आज जब आया भूकंप
नेपाल में पुरे उत्तर प्रदेश में
अचानक प्राकतिक दुर्घटना घटी
उसी पल जमीन फटी
सजे सम्भरें सुसज्जित गृह खँडहर में बदल गये
शमशान गृह में ही सारे शहर ही बदल गये
मेरा मन सोचता है कि

ये चुपचाप सा लेता हुआ युबा कौन है
क्या सोचता है और क्यों मौन है
ये शायद अपनें बिचारों में खोया है
नहीं नहीं लगता है ,ये सोया है
इसे लगता नौकरी कि तलाश है
अपनी योग्यता का इसे बखूबी एहसास है
सोचता था कि कल सुबह जायेंगें
योग्यता के बल पर उपयुक्त पद पा जायेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बृद्ध पुरुष किन विचारों में खोया है
आँखें खुली हैं किन्तु लगता है सोया है
इसने सोचा था कि
कल जब अपनी बेटी का ब्याह होगा
बर्षों से संजोया सपना तब पूरा होगा
उसे अपने ही घर से
अपने पति के साथ जाना होगा
अपने बलबूते पर घर को स्वर्ग जैसा बनाना होगा
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी
मेरा मन सोचता है कि
ये बालक तो अब बिलकुल मौन है
इस बच्चे का संरछक न जाने कौन है
लगता है कि
मा ने बेटे को प्यार से बताया है
बेटे को ये एतबार भी दिलाया है
कल जब सुबह होगी
सूरज दिखेगा और अँधेरा मिटेंगा
तब हम बाहर जायेंगें
और तुम्हारे लिए
खूब सारा दूध ले आयेंगें
शायद इसी एहसास में
दूध मिलने कि आस में
चुपचाप सा मुहँ खोले सोया है
शांत है और अब तलक न रोया है
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि
ये नबयौब्ना चुपचाप क्यों सोती है
न मुस्कराती है और न रोती है
सोचा था कि ,कल जब पिया आयेंगें
बहुत दिनों के बाद मिल पायेंगें
जी भर के उनसे बातें करेंगें
प्यार का एहसास साथ साथ करेंगें
पर अचानक जब आया भूकंप
मन कि आशाएं बेमौसम ही जल गयीं
धरती ना जानें क्यों इस तरह फट गयी

मेरा मन सोचता है कि
आखिर क्यों ?
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना पर
अचानक ये कौन सा कहर बरपा है
किन्तु इन सब बातों का
किसी पर भी, कुछ नहीं हो रहा असर
बही रेडियो ,टीवी का संगीतमय शोर
घृणा ,लालच स्वार्थ की आजमाइश और जोर
मलबा ,टूटे हुयें घर ,स्त्री पुरुषों की धेर सारी लाशें
बिखरतें हुयें सपनें और सिसकती हुईं आसें
इन सबको देखने और सुनने के बाद
भोगियों को दिए गये बही खोखले बादे
अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिये
कार्य करने के इरादे
बही नेताओं के जमघतो का मंजर
आश्बास्नों में छिपा हुआ घातक सा खंजर

मेरा मन सोचता है कि
आखिर ऐसा क्यों हैं कि
क्या इसका कोई निदान नहीं है
आपसी बैमन्सय नफरत स्वार्थपरता को देखकर
एक बार फिर अपनी धरती माँ कापें
इससे पहले ही हम सब
आइए
हम सब आपस में साथ हो
भाईचारे प्यार कि आपस में बात हो
ताकि
युबक ,बृद्ध पुरुष ,बालक,नबयौबना
सभी के सपनें और पुरे अरमान हों
सारी धरती पर फिर से रोशन जहान हो …….

— मदन मोहन सक्सेना

*मदन मोहन सक्सेना

जीबन परिचय : नाम: मदन मोहन सक्सेना पिता का नाम: श्री अम्बिका प्रसाद सक्सेना जन्म स्थान: शाहजहांपुर .उत्तर प्रदेश। शिक्षा: बिज्ञान स्नातक . उपाधि सिविल अभियांत्रिकी . बर्तमान पद: सरकारी अधिकारी केंद्र सरकार। देश की प्रमुख और बिभाग की बिभिन्न पत्रिकाओं में मेरी ग़ज़ल,गीत लेख प्रकाशित होते रहें हैं।बर्तमान में मैं केंद्र सरकार में एक सरकारी अधिकारी हूँ प्रकाशित पुस्तक: १. शब्द सम्बाद २. कबिता अनबरत १ ३. काब्य गाथा प्रकाशधीन पुस्तक: मेरी प्रचलित गज़लें मेरी ब्लॉग की सूचि निम्न्बत है: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/ http://www.hindisahitya.org/category/poet-madan-mohan-saxena/ http://madansbarc.jagranjunction.com/wp-admin/?c=1 http://www.catchmypost.com/Manage-my-own-blog.html मेरा इ मेल पता: madansbrac@gmail.com ,madansbarc@ymail.com

One thought on “मेरा मन सोचता है कि

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    नेपाल की आज की तस्वीर को बिआं कर दिया जो कितने दुःख से गुज़र रहा है , इस का अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है.

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