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आईना क्या बोलता है

हाल-फालहाल की बात है जब ऊत प्रदेश सरकार द्वारा मौसम के मारे किसानों को ढेरों मुआवज़ा बाँटा गया था और मीडिया ने एक सन्सनाती खबर मान इसे अखबार में जगह दे दी थी । अरे साहब, बस, जेंई गजब होय गयो। चीफ सिकटरी को मुख मंत्री की वह लताड़ पड़ी की वाकौ अपनी मरी हुई नानी जिन्दा दीखन लगी।  विन्नै तुरत-फुरत मुख्ख प्रवक्ता और मुख्ख सूचना अधिकारी को तलब कर लीज्यौ। अपने पर आयी लताड़ को सवा गुना बढ़ा कर उन्हें सुनाई । पटवारी बेचारे को मुअत्तल किया और अखबारों को सरकारी ‘अनुदान’ यानी विज्ञापन बन्द करने की धमकी दी। और लो जी, सब ठीक हो गया।

एक तरफ से सबने किसानों से नज़र फेर ली। जिलों के प्रमुख अधिकारीगण जिले में हुई मौतों को खुदकुशी मानने से इंकार कर गये। कहने लगे,

“और भी ग़म हैं ज़माने में खुदकुशी के लिये, अकेली फसल का नुकसान कोई वजह नहीं”।

गलती से जो चेक कटे और बँटे थे वे सब बाउँस हो गये और ये पैसा शायद मीडिया के मुँह पर टेप लगाने में काम आया।

केन्द्र सरकार किसानों से पूरी हमदर्दी जता रही है पर कर कुछ नहीं रही है। किसी भी तरह का कोई रिलीफ पैकेज की घोषणा तो दूर, इस मद में होने वाले व्यय का मूल्यांकन भी नहीं हुआ है। हद तो यह है कि कृषि पर कैबिनेट की मीटिंग आयोजित हुई और खबर आई कि कैबिनेट ने 100 स्मार्ट सिटी की योजना को मंजूरी दे दी है ! केन्द्र सरकार की नज़र में शायद स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन किसानों की समस्या से कहीं अधिक ज़रूरी मसले हैं।

हमारा देश विडम्बनाओं का उदाहरण है। वी पी सिंह ने उस मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया जिसे एक वक्त खुद उन्होंने समाज तोड़ने वाला माना था। देवी लाल ने कर्ज़ माफी ला कर IRDP योजना के तहत प्राप्त तमाम तरक्की मिट्टी में मिला दी। गाँव के सीधे- साधे लोगों को कर्ज़ ले कर वापस न करने की आदत डाल दी। और यह सब उस समय किया गया जब किसानों को इस सुविधा की जरूरत नहीं थी। पर आज, जब की उसकी फसल बर्बाद है और उसके पास कमाई का और कोई साधन नहीं है, उस पर किसी को भी तरस नहीं आ रहा है। आज जब उसे कर्ज़ माफी की अत्यधिक आवश्यकता है, तो कोई सामने नहीं आ रहा है।

किसान दिन दहाड़े पेड़ से लटक गया। मिडिया फिल्म बनाती रही, आम आदमी का मसीहा भाषण बघारता रहा और पुलिस ! पुलिस ‘तहरीर’ का इंतज़ार करती रही। उसकी ‘शहादत’ के बाद जो आशीष खैतान आदि नेताओं ने आँसू बहाए तो कई मगरमच्छों ने खुदकुशी कर ली।

फ़कीरे-शहर  तो फ़ाँके से मर  गया  यारों,     अमीरे-शहर ने हीरा चाट खुदकुशी कर ली।

 

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “आईना क्या बोलता है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सही लिखा है आपने. प्रदेश सरकारों को किसानों की चिंता बिल्कुल नहीं है.लफ्फाजी चाहे जितनी कर लें.

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