ग़ज़ल : अजब गजब सँसार हुआ
रिश्ते नाते प्यार वफ़ा से
सबको अब इन्कार हुआ
बंगला, गाड़ी, बैंक तिजोरी
इनसे सबको प्यार हुआ
जिनकी ज़िम्मेदारी घर की
वह सात समुन्द्र पार हुआ
इक घर में दस दस घर देखे
अब अज़ब गज़ब सँसार हुआ
कुछ मिलने की आशा जिससे
उससे सबको प्यार हुआ
व्यस्त हुए तब बेटे बेटी
बूढ़ा घर में जब बीमार हुआ
–– मदन मोहन सक्सेना
बहुत अच्छी ग़ज़ल. मामूली तकनीकी खामियों से ज्यादा अंतर नहीं पड़ता.
आपका हृदयसे आभार .
सोच अच्छी है पर बहर से कोई कोई शेर खारिज है। पुनः प्रयास कर के देख लें।
प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार .