ग़ज़ल
जिसके कर कमलों से यह घर, स्वर्ग सा बना।
उस माँ की हम, निस दिन मन से, करें वंदना।
जिसके दम से, हैं जीवन में, सदा उजाले,
उसके जीवन, में उजास की, रहे कामना।
जिसने ममता, के आगे निज, किया निछावर,
उस ममत्व को, करें नमन, रख शुद्ध भावना।
आजीवन जो, रही दायिनी, संतति के हित,
उसके हित के, लिए करे संतान प्रार्थना।
धूप वरण कर, जिसने हमको सदा छाँव दी,
हम उपाय वे करें न माँ को, छुए वेदना।
सारे संचित पुण्य सौंपती, जो संतति को,
फर्ज़ यही, संतान उसे सौंपे न यातना।
जिस देवी ने संस्कारों से सींचा हमको,
उसके चूमें कदम, सफल तभी साध्य-साधना।
शीश झुकाते सुर त्रिलोक के जिसके द्वारे,
वंचित हो उस मातृ-प्रेम से कोई द्वार ना।
जिसने पाया मूर्त मातृ-सुख इस जीवन में,
भव में वो इंसान सुखी है सदा “कल्पना”
— कल्पना रामानी
सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद विजय जी
बहुत सुन्दर ! माँ को समर्पित यह ग़ज़ल अनुपम है !