बाल कविता

मेहनत की जीत

अपने वजन से भी भारी
,
दाना ले चींटी चढ़ी अटारी।

कुछ दूर चढ़कर गिर जाती,
फिर सम्हलकर चढ़ने लगती।

एक नहीं क़ई बार गिरी,
फिर भी वो हिम्मत न हारी।

जीत की उसमें था विश्वास,
जारी रखी अपनी अभ्यास।

आखिर एकबार आयी बारी,
दाना ले चढ़ गयी अटारी।

चींटी यही देती है सीख,
मेहनत की होती है जीत।

-दीपिका कुमारी दीप्ति

दीपिका कुमारी दीप्ति

मैं दीपिका दीप्ति हूँ बैजनाथ यादव की नंदनी, मध्य वर्ग में जन्मी हूँ माँ है विन्ध्यावाशनी, पटना की निवासी हूँ पी.जी. की विधार्थी। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।। दीप जैसा जलकर तमस मिटाने का अरमान है, ईमानदारी और खुद्दारी ही अपनी पहचान है, चरित्र मेरी पूंजी है रचनाएँ मेरी थाती। लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी।। दिल की बात स्याही में समेटती मेरी कलम, शब्दों का श्रृंगार कर बनाती है दुल्हन, तमन्ना है लेखनी मेरी पाये जग में ख्याति । लेखनी को मैंने बनाया अपना साथी ।।

One thought on “मेहनत की जीत

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया, प्रेरक कविता !

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