आनंदमठ – अंग्रेजो की प्रशंसा और जानिए क्यों नहीं गाते हैं मुस्लिम वंदे मातरम्
श्री बंकिम चंद्र चटर्जी जी की लिखी कालजयी रचना ‘ आन्नद मठ ‘ जिसमें लिखा वन्देमातरम गाने से हर भारतीय गर्व महसूस करता है , हलाकि की वंदे मातरम् मुसलमनो के न गाने पर विवाद भी हुआ है । वंदे मातरम् मुसलमनो का न गाना हिन्दुवादी संगठन उनकी संदेहात्मक देश भक्ति से जोडते हैं ,मुसलामन कहते हैं की वंदे मातरम् में भारत माता के सामने शीश झुकाने को कहा जाते अथवा भारत माता की वंदना की जाती है जबकि इस्लाम अल्लाह के सिवा किसी के सामने सर झुकाने की आज्ञा नहीं देता।
पर मुझे लगता है की मुसलमनो का यह तर्क पूरा सही नहीं है , असली बात शायद यह है की आंनदमठ में नायक सत्यानंद मुसलमनो को परम शत्रु समझता था और उनसे भारत को आज़ाद करवाना चाहता था । बंगाल से मुस्लिम राज्य समाप्त करने के बाद वह अंग्रेजो से युद्ध की तैयारी करता है पर उसको एक महात्मा आके समझाता है की अंग्रेज हिन्दुओ के मित्र हैं ।
देखिये आनंदमठ की कुछ झलकियां जिसमें नायक सत्यानंद और महात्मा के बीच संवाद होता है –
1-महात्मा- तुम्हारा कार्य सिद्ध हो गया , मुस्लिम राज्य ध्वंस हो चुका । अब तुम्हारी यंहा कोई जरुरत नहीं , अनर्थ प्राण हत्या की आवशयकता नहीं ।
सत्यानंद- मुस्लिम राज्य ध्वंस जरूर हुआ है पर अभी हिन्दू राज स्थापित नहीं हुआ है
महात्मा- अभी हिन्दू राज्य सथपित न होगा ,अतएव चलो।
2- महात्मा – अंग्रेज लोक ज्ञान में प्रकांड पंडित है, लोक शिक्षा में बड़े पटु हैं । अत: अंग्रेजो के राजा होने से ,अंग्रेजी शिक्षा से स्वत: वह ज्ञान उत्पन्न होगा । जब तक हिन्दू उस ज्ञान से ज्ञानवान , गुणवान, और बलवान न होंगे अंग्रेजी राज्य रहेगा । अंग्रेजी राज्य में प्रजा सुखी होगी , निष्कंटक धर्माचरण होंगे। अंग्रेजो से बिना युद्ध किये ही नि:शास्त्र होकर मेरे साथ चलो।”
सत्यानंद- महात्मान! यदि ऐसा ही था , अंग्रेज को ही राजा बनाना था तो हम लोगो को इस कार्य में प्रवृत करने की क्या आवशयकता तिब”
महात्मा- अंग्रेज उस समय बनिया थे , अर्थ संग्रह में ही उनका ध्यान था । अब संतानो( हिन्दू बागी) के कारण ही वे राज्य शासन हाथ में लेंगे , क्यों की बिना राजस्व लिए अर्थ संग्रह नहीं हो सकता । अंग्रेज राजदंड लें , इसलिए संतानो का विद्रोह हुआ । अब आओ , स्वयं ज्ञान लाभ कर दिव्य चक्षुओं से सब देखो।”
सत्यान्नद- हे महात्मा! ज्ञान की मुझे आवशयकता नहीं , मैंने जो व्रत लिया है की मातृ भक्ति अचल हो उसका आशीर्वाद दीजिये।”
महात्मा- व्रत सफल हो गया , तुमने माता का मंगल साधन किया है , अंग्रेजी राज्य तुम्ही लोगो द्वारा स्थापित समझो । अब युद्ध की भावना छोड़ो और खेती के काम में लग जाओ जिससे पृथ्वी हरी भरी हो “।
सत्यानन्द आंसू निकालते हुए- माता को शत्रु रक्त से हरी भरी करूँ?
महात्मा- शत्रु कौन है? शत्रु अब कोई नहीं । अंग्रेज हमारे मित्र है ।
इतना कह के महात्मा सत्यानंद का हाथ पकड़ के विष्णु मूर्ति की तरफ ले चलता है .
आनंदमठ पुस्तक में बंकिम चंद्र जी अंत में अंग्रेजो को अपना मित्र कहते है और यह कहते हैं की उनके राज में प्रजा ( हिन्दू ) सुखी और ज्ञानवान,बलवान, गुणवान होंगे । यह एक तरह से मुस्लिम शासको पर यह आरोप लगना था की उनके राज में हिन्दुओ का पतन हो रहा था ,हिन्दू ज्ञानहीन ,गुणहीन , निर्बल थे तथा भारत माता दुखी थी । अंग्रेजो के राज आने से हिन्दुओ के लिए सब उत्तम हो जायेगा।
तो क्या एक मुस्लिम जो की अधिकतर मुस्लिम शासको का समर्थक होता है वह बंकिम चंद्र द्वारा मुस्लिम शासको पर लगाये गए आरोपो से सहमत हो पाता? हिन्दुओ द्वारा मुस्लिम शासन ख़त्म करके अंग्रेजो का शासन लाने और उसकी प्रशंसा जैसे कार्य से सहमत हो पाता?
शायद नहीं …. इसी लिए मुस्लिम वंदे मातरम् का विरोध करते हैं ?
यह आपकी कल्पना है. मुसलमानों ने आनन्द मठ उपन्यास शायद ही पढ़ा होगा. उनके द्वारा वन्दे मातरम का विरोध करने का कारण यह है कि उनके तथाकथित धर्म में ईश्वर के अलावा किसी को प्रणाम या वंदना करने की मनाही है. इसलिए वे “भारत माता की जय” भी नहीं कहते. हाँ वे माया वती की जय और फूलन देवी तक की जय कह सकते हैं.
अगर आपकी बात सत्य है अर्थात आपके द्वारा बताया गया कारण सही है तो यह अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि इसका तात्पर्य यह है कि भारत के मुसलमान अभी भी मानसिक रूप से विदेशी हमलावर शासकों से जुड़े हुए हैं. ऐसी मानसिकता ही देश की अधिकांश समस्याओं का कारण है.