कुछ मुक्तक
पुण्य हो गए शून्य मात जगदंबा बोली
बढ़ गया पापाचार कि देखो धरती डोली
उजड़ गया घर बार, मिला सब कुछ धरती में
गये काल के गर्त मेरे सारे हमजोली
हमसे पूछा न गया उनसे बताया न गया
प्यार मन में ही रहा ,होठों पर लाया न गया
लट एक झटके से पलकों पे गिराली लेकिन
आँख का मोती मगर हमसे छिपाया न गया
रातों को चाँद सितारों से कहते हम अपने अफसाने
पलकों की ठंडी सेजों पर जो स्वप्न सजाये अनजाने
होंठों से बाहर आ न सकी छिप गईं हृदय के कोने में
तेरे मेरे मन की बातें या मैं जानूं या तू जाने
— लता यादव
बहुत अच्छे मुक्तक !