मुक्तक/दोहा

कुछ मुक्तक

pic 1पुण्य हो गए शून्य मात जगदंबा बोली

बढ़ गया पापाचार कि देखो धरती डोली

उजड़ गया घर बार, मिला सब कुछ धरती में

गये काल के गर्त मेरे सारे हमजोली

 

pic 2

हमसे पूछा न गया उनसे बताया न गया

प्यार मन में ही रहा ,होठों पर लाया न गया

लट एक झटके से पलकों पे गिराली लेकिन

आँख का मोती मगर हमसे छिपाया न गया

 

रातों को चाँद सितारों से कहते हम अपने अफसाने

पलकों की ठंडी सेजों पर जो स्वप्न सजाये अनजाने

होंठों से बाहर आ न सकी छिप गईं हृदय के कोने में

तेरे मेरे मन की बातें या मैं जानूं या तू जाने

 

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

One thought on “कुछ मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छे मुक्तक !

Comments are closed.