नेपाल में भूकम्प
प्रकृति की यह ध्वंस लीला ,और चलेगी कब तक ?
चली आ रही है यह लीला ,आदि काल से आज तक l
ध्वंस किया सृजन को ,खुद का हो या मानव कृत
कुदरत के रूद्र कोप से,दहसत में है इंसानियत l
क्या खुदा है नाराज़ ?या है प्रकृति की कोप-दृष्टि?
समय समय पर दिया झटका,स्थिर नहीं है सृष्टि l
चुपचाप सहती रहती ,धरती हर जुर्म हर शोषण
अपनी संतान मान कर,करती सबका पालन पोषण l
सहने की एक सीमा है ,सीमा पार होता है विस्फोट
टिकाकर पीठ दिवाल पर ,धरती ने लिया है करवट l
शिशु हो या बालक ,किशोर हो या जवान ,थे सबके सपने
एक झटके में ध्वस्त हुए सब ,मिट गए छोटे बड़े के सपने l
कुदरती आपदाओं पर डाल कर देखो एक नज़र
बाड ,सुखा,सुनामी,भूकंप, हैं सब कुदरती कहर l
कुदरत की इशारा क्या है ?इंसान को पड़ेगा समझना
गर नहीं समझे कुदरत को,पड़ेगा उसकी मार खाना l
केदार नाथ का प्रलय, फिर काश्मीर का जल प्रलय
सोचो क्यों नेपाल का जलजला ?खतरे में है हिमालय ?
रचना : कालीपद “प्रसाद”
बढ़िया !