आत्मकथा

आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 45)

राम मंदिर आन्दोलन में मेरे विचारों के प्रकाशन के दौरान मेरे कई नये मित्र बने। उनमें दो नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं- एक, कोलकाता के श्री रामअवतार सराफ और दूसरे, उदयपुर के श्री सुभाष मेहता। रामअवतार जी कपड़े के व्यापारी हैं और कम पढ़े होने के बावजूद अच्छा लिख लेते हैं। अब तो उन्होंने पारिवारिक कारणों से लिखना बन्द कर दिया है, परन्तु पहले खूब लिखा और छपा करते थे। तभी हमारा आपस में सम्पर्क हुआ, जो घनिष्ट से घनिष्टतर होता चला गया। श्री सुभाष मेहता उदयपुर में एक सरकारी कम्पनी में कोई केमीकल सप्लाई किया करते थे। उनकी पत्नी कहीं सर्विस करती थीं। वे भी हमारी तरह स्वयंसेवक हैं और अखबारों में प्रायः लिखा करते थे, हालांकि उनकी हिन्दी में मात्राओं की गलतियाँ बहुत होती थी। मुझे अपने इन दोनों मित्रों के दर्शनों का सौभाग्य भी मिला है।

सन् 1991 में जब दुर्गापूजा आ रही थी, तो उसे देखने के लिए रामअवतार जी ने हमें कोलकाता आने का आमंत्रण दिया। उनके आग्रह को मैं टाल नहीं सका। वैसे भी मैंने सुन रखा था कि कोलकाता जैसी दुर्गापूजा कहीं नहीं होती। सौभाग्य से थोड़ी ना-नुकर के बाद श्रीमतीजी भी चलने को तैयार हो गयीं। हमारा विचार लगे हाथ जगन्नाथपुरी देखने का भी था। इस हेतु हमने आरक्षण करा लिये। उन दिनों लौटने का आरक्षण एक ही जगह से नहीं होता था, इसलिए कोलकाता से वापसी का आरक्षण रामअवतार जी ने करा दिया।

निर्धारित दिन पर हम गाड़ी में बैठे। साथ में मेरी साली गुड़िया भी थी। उस समय दीपांक केवल एक वर्ष का था। वह आराम से खड़ा हो जाता था और थोड़ा चल लेता था। जब गाड़ी हावड़ा प्लेटफार्म पर पहुँची, तो वहाँ रामअवतार जी हमारे डिब्बे के बाहर ही हमारी प्रतीक्षा करते हुए मिले। तब तक मैंने उनका केवल एक फोटो ही देखा था, परन्तु स्टेशन पर उनको देखते ही मैं पहचान गया। हम गले मिले, फिर परिवार से परिचय कराया। फिर हम टैक्सी में बैठकर उनके बड़ा बाजार क्षेत्र में बनारसी घोष स्ट्रीट स्थित निवास पर पहुँचे। उनकी श्रीमतीजी अर्थात् हमारी भाभीजी बहुत स्नेहपूर्वक मिलीं। उनके तीन पुत्रियाँ तथा एक पुत्र है, जो उस समय सभी अविवाहित थे। घर में उनके छोटे भाई का परिवार भी रहता था। हमारे आने से और रौनक हो गयी। हमें वहाँ बहुत अच्छा लगा। नीचे की मंजिल पर उनके पास एक कमरा और था, उसमें हमारे सोने की व्यवस्था हो गयी।

उन दिनों काॅटन स्ट्रीट में स्थित उनकी कपड़े की दुकान बन्द थी, क्योंकि कोलकाता में दुर्गापूजा के दिनों में बस पूजा-ही-पूजा होती है। उन दिनों सारे व्यापार बन्द रहते हैं, केवल खाने-पीने के सामानों की दुकानें खुली रहती हैं। इसलिए रामअवतार जी ने अपना सारा समय हमें ही दिया। पहले हम कोलकाता के मुख्य-मुख्य दर्शनीय स्थान देखने गये, जैसे राष्ट्रीय संग्रहालय, विज्ञान संग्रहालय, बिरला तारामंडल, विक्टोरिया मैमोरियल (बाहर से), म्यूजीकल फाउंटेन, हावड़ा ब्रिज, चिड़ियाघर आदि। रात के समय हम सब टैक्सी में पूजा के पंडाल देखने गये। रातभर हम जाने कहाँ-कहाँ गये और एक से बढ़कर एक विलक्षण पंडाल देखे। ऐसे पंडालों की मैंने कल्पना भी नहीं की थी। तभी हमने समाचारपत्रों में एक ऐसे पंडाल के बारे में पढ़ा, जो अयोध्या के राममंदिर के प्रस्तावित भवन के अनुसार बनाया गया था। उसे देखने के लिए मैं और रामअवतार जी हावड़ा गये थे। आने-जाने में समय अवश्य लगा, लेकिन उसे देखकर हमें बहुत आनन्द आया। उसके फोटो भी वहाँ मिल रहे थे। हम उसके 2-3 फोटो खरीद लाये।

हमारे वाराणसी आफिस के कम्प्यूटर विभाग के पुराने साथी श्री आर.के. जैन उस समय कोलकाता में आ चुके थे। हम एक दिन उनके घर भी गये और उनके साथ ही अगले दिन चिड़ियाघर देखने गये थे।

तीन-चार दिन कोलकाता में बिताने के बाद हम पूर्व निर्धारित दिन जगन्नाथ पुरी की ओर चले। हमारे आग्रह पर रामअवतार जी ने अपनी सबसे छोटी पुत्री संगीता (संगू) को भी हमारे साथ भेज दिया था। पुरी का समुद्र तट हमें बहुत अच्छा लगा, हालांकि वहाँ शुद्ध शाकाहारी भोजन मिलने में बहुत कठिनाई होती थी। हम जगन्नाथ जी के दर्शन करने भी गये। वहाँ भीड़ बहुत थी और व्यवस्था भी बहुत गड़बड़ थी। अगले दिन हमारा विचार कोणार्क, भुवनेश्वर आदि घूमने जाने का था, जिसके लिए हमने टिकट भी बुक करा रखी थी। परन्तु दुर्भाग्य से उसी दिन दीपांक को बुखार आ गया। इससे हमने अपनी यात्रा एक दिन आगे सरकवा दी।

जब एक मेडीकल स्टोर द्वारा दी गयी दवाइयों से दीपांक का बुखार नहीं उतरा, तो मेरा प्राकृतिक चिकित्सा का ज्ञान यहाँ बहुत काम आया। वहाँ जो भी ठंडा पानी हमें मिला, उसी से पट्टियाँ भिगो-भिगोकर मैंने दीपांक के पेट पर रखीं। इससे बुखार काबू में आ गया। अगले दिन हमने केवल आराम किया और उससे अगले दिन घूमने गये। कोणार्क, भुवनेश्वर, नन्दन कानन, लिंगराज मंदिर आदि अनेक स्थान हमने देखे। एक दिन पुरी में समुद्र तट पर फोटो खींचते समय पानी की तेज लहर आने के कारण हमारा आॅटोमैटिक कैमरा पानी में गिर गया और खराब हो गया, जो अभी तक ठीक नहीं हुआ है। खींचे हुए अधिकांश फोटो भी खराब हो गये थे। इसका मुझे बहुत दुःख हुआ। फिर भी कई फोटो बच गये। पुरी से लौटकर हम कोलकाता आये और वहाँ से अगले ही दिन वाराणसी की ओर चल पड़े।

यह कोलकाता की मेरी पहली यात्रा थी। इसके बाद तो कई बार बैंक के कार्य से कोलकाता जाने का अवसर मिला है, क्योंकि हमारे बैंक का प्रधान कार्यालय कोलकाता में ही है। राम अवतार जी से भी कई बार भेंट हुई है। वैसे कोलकाता शहर मुझे अधिक पसन्द नहीं आया। वहाँ एक ओर तो भारी समृद्धि है और दूसरी ओर घोर दरिद्रता है। अधिकांश आबादी दरिद्रता का जीवन जीती है। वहाँ की जलवायु भी बहुत खराब है। प्रदूषण इतना है कि आदमी साँस भी आसानी से नहीं ले सकता। बेशुमार भीड़ के कारण पैदल चलना भी दुष्कर कार्य है। कुल मिलाकर यदि मुझे महानगरों में सबसे खराब महानगर का चुनाव करने के लिए कहा जाये, तो मैं बेखटके कोलकाता का ही नाम लूँगा।

(जारी…)

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

4 thoughts on “आत्मकथा – दो नम्बर का आदमी (कड़ी 45)

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , यह कड़ी भी दिलचस्प लगी और आप की कलकत्ते की यात्रा , दुर्गा पूजा और जगन्नाथ की यात्रा रोचक लगी . आप का कैमरा भीग गिया जिस से फोटो बर्बाद हो गए , जिस से मूड खराब हो गिया और इस बीच में दीपांक को बुखार आ गिया , फिर भी आप का सफ़र अच्छा ही रहा .कलकत्ते की गंदगी के बारे में लिखा , सुना तो था ,अब आप से पता चल गिया कि यह शहर गन्दा ही होगा .

    • विजय कुमार सिंघल

      हार्दिक धन्यवाद, भाई साहब !

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपकी कोलकत्ता एवं पुरी की यात्राओं का वृतांत पढ़कर हमें अपनी भी अलग अलग समय पर की गई यात्राओं की स्मृतियाँ ताज़ा हो गयी। विवरण रोचक एवं प्रभावशाली हैं। हार्दिक धन्यवाद।

    • विजय कुमार सिंघल

      आभार, मान्यवर!

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