ग़ज़ल
निशा की गोद में शब भर दिया लेकर भटकता है,
कोई पूछे तो ये पागल सा चंदा ढूंढता क्या है |
रपट लिख लो दरोगा जी मेरा महबूब खोया है,
मुझे शक चाँद पर साहिब सुबह से घर में सोया है |
नहीं शब ने बताया है न पेचोखम ए बिस्तर ने ,
नहीं सोई फकत रोई रूमालो हाल कहता है |
खड़ी कर दूं कतारें मैं वफ़ा के ताजमहलों की ,
तुम्हें मुमताज होने से बताओ किसने रोका है |
भरी महफ़िल में होकर भी रहा ‘आलोक’ तन्हा ही ,
तुम्हारे इश्क में जानम ग़ज़ल ही गुनगुनाता है |
— अनन्त आलोक
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी .