कविता

प्रकृति

सकल जग का ये सकल खेल
मानव शेर तो प्रकृति सवा शेर
छोटा वार मानव बार-बार करता
उसके ऊपर प्रकृति का एक ही वार भारी पड़ता
झूठी कहानी है यह कि
पायोधि पर पार अभ्र में
स्वर्ग लोक है कहीं पर
और कहीं पर अधः लोक
अगर कहीं पर यह है तो
वह यहीं पर है, यहीं पर
प्रकृति का वार जो कभी
कहीं कहीं पर था आता
वह व्याप्त हो गया अब तो पल-छिन
कभी कभी का वार
विकराल रूप में है आता
साथ ही इसके अब चल रहा
निरन्तर प्रकृति का प्रहार
इस पल-छिन के प्रहार से
मानव का जीवन संकट में
मानव के साथ यहां पर
पृथ्वी भी पड़ी प्रलय में
मिटने वाला यहां पर
इसका महा सत्व है
जागो रे मानव!
थोड़ी भी नहीं वक्त है!

प्रदीप कुमार तिवारी

प्रदीप कुमार तिवारी

नाम - प्रदीप कुमार तिवारी। पिता का नाम - श्री दिनेश कुमार तिवारी। माता का नाम - श्रीमती आशा देवी। जन्म स्थान - दलापुर, इलाहाबाद, उत्तर-प्रदेश। शिक्षा - संस्कृत से एम ए। विवाह- 10 जून 2015 में "दीपशिखा से मूल निवासी - करौंदी कला, शुकुलपुर, कादीपुर, सुलतानपुर, उत्तर-प्रदेश। इलाहाबाद मे जन्म हुआ, प्रारम्भिक जीवन नानी के साथ बीता, दसवीं से अपने घर करौंदी कला आ गया, पण्डित श्रीपति मिश्रा महाविद्यालय से स्नातक और संत तुलसीदास महाविद्यालय बरवारीपुर से स्नत्कोतर की शिक्षा प्राप्त की, बचपन से ही साहित्य के प्रति विशेष लगव रहा है। समाज के सभी पहलू पर लिखने की बराबर कोशिस की है। पर देश प्रेम मेरा प्रिय विषय है मैं बेधड़क अपने विचार व्यक्त करता हूं- *शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा।।* और भ्रष्टाचार पर भी अपने विचार साझा करता हूं- *मैं शब्दों से अंगार उड़ाने निकला हूं, जन जन में एहसास जगाने निकला हूं। लूटने वालों को हम उठा-उठा कर पटकें, कर सकते सब ऐसा विश्वास जगाने निकला हूं।।* दो साझा पुस्तके जिसमे से एक "काव्य अंकुर" दूसरी "शुभमस्तु-5" प्रकाशित हुई हैं

2 thoughts on “प्रकृति

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

    • प्रदीप कुमार तिवारी

      dhanyawad

Comments are closed.