कविता

सिर्फ तुम…

चलो उस जहां में
जहां शाम न हो, सिर्फ सहर हो
जहां रात न हो, सिर्फ दिन हो
जहां दुःख न हो, सिर्फ सुख हो
जहां गैर न हों, सिर्फ अपने हों
जहां ख्वाब न हो, सिर्फ हकीकत हो
जहां दुश्मन न हों, सिर्फ दोस्त हों
मुझे पता है ऐसा सब कुछ
सिर्फ एक जगह है…
तुम्हारे आगोश में !
मुझे खुद से जुदा मत करो
मेरी सोच का दायरा
सिर्फ तुम तक है !

धर्म पाण्डेय

One thought on “सिर्फ तुम…

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह !

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