ग़ज़ल
हाथ में हाथ लेकर चला कीजिए,
स्याह है रात थोड़ा डरा कीजिए |
डस न ले ये जवां गबरू कोई कहीं,
जुल्फ नागिन हुई है कसा ….कीजिए |
पान बीड़ी न मदिरा पियो तो सही ,
आशिकी का मुकम्मल नशा कीजिए |
बल न खाए कमर गिर न जाओ कहीं ,
जान हाथों में लेकर चला कीजिए|
आप ने जो दिए जख्म रिसने लगे ,
आप ही दर्दे दिल की दवा कीजिए |
हम मुकम्मल तुम्हें अब के देंगे. सजा ,
आप भी शौक से हर खता कीजिए |
— अनन्त आलोक
वाह वाह ! बहुत खूब !!