गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हाथ में हाथ लेकर चला कीजिए,
स्याह है रात थोड़ा डरा कीजिए |

डस न ले ये जवां गबरू कोई कहीं,
जुल्फ नागिन हुई है कसा ….कीजिए |

पान बीड़ी न मदिरा पियो तो सही ,
आशिकी का मुकम्मल नशा कीजिए |

बल न खाए कमर गिर न जाओ कहीं ,
जान हाथों में लेकर चला कीजिए|

आप ने जो दिए जख्म रिसने लगे ,
आप ही दर्दे दिल की दवा कीजिए |

हम मुकम्मल तुम्हें अब के देंगे. सजा ,
आप भी शौक से हर खता कीजिए |

अनन्त आलोक

अनन्त आलोक

नाम - अनन्त आलोक जन्म - 28 - 10 - 1974 षिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक, पी.जी.डी.आए.डी., व्यवसाय - अध्यापन विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकु बाल कविता, लेख, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघुकथा, लोक - कथा, मुक्तक एवं संपादन। लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रेजी। विशेष- हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित पर्वतालोक की उपाधि - विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान - नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र - दो वर्ष पत्रकारिता आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित - दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित - काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी - चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशन - तलाश (काव्य संग्रह) 2011 संपर्क सूत्र - साहित्यालोक, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन, जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022 9418740772, 9816642167

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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