ग़ज़ल
वतन के काम आएगा |
न हड्डी चाम आएगा ||
बहक जाऊं में गिर जाऊं |
तुम्हारा नाम आएगा ||
नहीं दशरथ न कौशल्या |
कहाँ से राम आएगा ||
मुसाफिर थक के लोटा है |
लबालब जाम आएगा ||
है उनके हाथ में पत्थर |
कि अबके आम आएगा ||
घड़ा भर छोड़ माँ माखन |
तुम्हारा शाम आएगा ||
तू लिख ‘आलोक’ लिखता चल |
कभी तो दाम आएगा ||
— अनन्त आलोक
अच्छी ग़ज़ल !