कविता

रहनुमा…

तुम मेरे रहनुमा हो

साथ तेरे

अंजाम तक का सफर

खुशनुमा हो

सितारों के नूर से जगमगायें फलक

जमीं पर गुल ही गुल बिछे हो दूर तलक

मेरे संग तेरी यदि दुआ हो

तेरी महक से घिरा रहूँ

मेरे आसपास

चन्दन की खुश्बू से तर

जैसे तू यदि धुँआ हो

इबादत करते करते

हो जाऊं जिसके लिए फ़ना

तुम ऐसी मेरी महबूबा हो

मेरे किसी सवाल का जवाब तूने दिया नहीं

प्यार की भाषा मौन है

इसलिए तुम बेजुबाँ हो

तुमने सिर्फ मेरी उल्फत को जाना है

मैंने बताया नहीं कभी
कि
तुम तो मेरे खुदा हो

जहाँ में लोग मिले बहुत

पर तुम सबसे ज्यादा हसीं और

आदत से जुदा हो

वो दिन मेरे जीवन का अंतिम होगा

जब तुम

मुझे अपने आगोश में लेकर कहोगे

तुम मुझपे फ़िदा हो

किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “रहनुमा…

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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