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आईना बोलता है

खबर है कि उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के अनुसार सरकारी विज्ञापनों में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की फोटो  छप सकती है, किसी और नेता की नहीं । इसका अर्थ यह हुआ कि विभागों के मंत्रियों और राज्य मंत्रियों के साथ साथ प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों का भी डिब्बा गोल हो गया। और जब बड़े बड़े बह गये तो प्रदेशों के राज्य मंत्री और ‘दर्जा प्राप्त’ मंत्री किस खेत की मूली हुए !

वैसे देखा जाय तो सरकारी विज्ञापन में किसी भी नेता की फोटो की आवश्यकता ही क्या है। भाई, सरकारी कारगुज़ारी का इश्तहार है, कोई ईद-बक़रीद या होली-दीवाली की मुबारकबाद का पोस्टर थोड़ी ही है, पर अब तक कोशिश यही रही है की ज़्यादा से ज़्यादा थोबड़े सरकार के ‘एक महीने’ की उपलब्धि दर्शाते हुए विज्ञापन में समा जाएँ ।

हकीकत तो यह है कि अब, हकीकत का मज़ाक उड़ाते हुए, विज्ञापन ही रह गये हैं, । उच्चतम न्यायालय के आदेश सारगर्भित हैं, परन्तु, और जिसे कहते हुए डर भी लग रहा है क्योंकि भारत देश में न्याय पालिका और मीडिया के खिलाफ बोलना महापाप है, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा प्रधान न्यायाधीश को भी ‘मुँह दिखाई’ के अधिकार में सम्मिलित किया जाना विस्मयकारी है। विस्मय इसलिए कि अभी तक उच्चतम न्यायालय का कोई विज्ञापन देखने को नहीं मिला है। देश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए, जहाँ संवेदनशील और महत्वपूर्ण निर्णय बजाए सरकार के उच्चतम न्यायालय ले रहा हो, ऐसा लगता है कि आम जनता को उसके हित में लिये गये निर्णयों की जानकारी देने के निमित्त ये निर्णय लिया गया होगा। कोई कह रहा था कि विज्ञापनों में नेताओं के ‘फेशियल’ कराये एक से एक ‘खूबसूरत’ चेहरे देखने के बाद प्रधान न्यायाधीश ने सोचा हो कि उनके चेहरे में कौन सी कमी है कि जिसे अवलोकन हेतु पेश नहीं किया जा सकता, सो कइयों का पत्ता काट कर खुद को शामिल कर दिया हो। पर , मुझे नहीं लगता की प्रधान न्यायाधीश ने खुद को ‘आम’ नेताओं से प्रतिस्पर्धावश ऐसा निर्णय लिया होगा ।

इस निर्णय से और कुछ हो न हो, एक फायदा ये अवश्य होगा कि, जहाँ शहर की सड़कों पर दुर्घटनाओं को आमंत्रित करते प्रदेशीय छुटभइयों के, उनके क़द से भी हजार गुणा बड़े पोस्टरों से छुटकारा मिल  जाएगा वहीं, उन चेहरों को, जिन्हें देख कर दिन का खाना मारा जाता हो, बरबस देखने की यंत्रणा से भी मुक्ति मिल जाएगी।

पर मुझे अपने माननीयों की क्षमता पर पूरा विश्वास है कि वे हमें इतने सस्ते में नहीं छोड़ने वाले । हमें अपनी याद दिलाने को वे कोई न कोई नया तरीका जरूर खोज लेंगे।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

One thought on “आईना बोलता है

  • विजय कुमार सिंघल

    सही कहा आपने. मुलायम, लालू जैसे नेता लोग अपनी तस्वीरें सरकारी खर्च पर छपवाने के लिए कोई न कोई चोर दरवाजा अवश्य खोज लेंगे. कानून डाल डाल तो ये पात पात !

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