ग़ज़ल
चाँद काला बहुत है |
रंग शाया बहुत है ||
चार दिन जिन्दगी के |
पार्थ सोता बहुत है ||
हो न जाए तू शाइर |
दर्द सहता बहुत है ||
खाक हो जाएगा ये |
सूर्य जलता बहुत है ||
जीस्त बेनूण होगी |
यार रोता बहुत है ||
नैन भर भर कटोरे |
सूर पीता बहुत है ||
राह इस की कठिन है |
इश्क जीता बहुत है ||
मैं न जाऊं डिपू में |
नाज घर का बहुत है ||
फ्रेंड हसबेंड होया |
रोज लड़ता बहुत है ||
(शाया = प्रकाशित, बेनून =खारा रहित, जीस्त =जिन्दगी, सूर = शराब)
— अनन्त आलोक
वाह ! वाह !!