आत्मकथा

स्मृति के पंख – 15

गढ़ीकपूरा में एक संत रहा करते थे। उनकी रिहायश ऊपर छत पर कमरा में थी। नीचे सेवादार मौजूद रहता था। जो कोई दर्शनों को आता सेवादार को अपना नाम बतलाता, फिर उसे समय अनुसार दरशन का समय मिलता। मेरे ससुरजी भी उनके बहुत प्रेमी थे और वह गुरु महाराजजी के नाम से प्रसिद्ध थे। एक दफा मुझे भी ससुरजी अपने साथ उनके पास ले गये। मुझे उन्होंने प्यार और आशीर्वाद भी दिया। उनके मन में कुछ खुशी भी हुई। उस उम्र मेें भी मेरी धार्मिक और सियासी सूझबूझ अच्छी थी। उससे उनको प्रसन्नता हुई। मेरे सर पर हाथ फेर कर कहने लगे जब भी यहाँ आया करो, मेरे पास जरूर आया करो। तुम्हें जल्दी ही बुला लिया करूँगा। थोड़ा समय उनके पास ठहरे, कुछ आशीर्वाद और कुछ शिक्षा भी ली।

जब कभी सुशीला को विदा करने का समय होता, तो उनकी माताजी बहुत रोती। माँ बेटी का बिछुड़ते के समय रोना तो होता ही है। मुझे लगता है, वह बहुत दुखी मन से रोती। मैंने एक दिन उनको कहा- माँ, तुम इतना दुखी क्यूं होती हो। मेरे साथ तेरी बेटी सुखी होगी और फिर बेटी ने तो पराये घर जाना ही होता है। तुम चिन्ता क्यूं करती हो? मेरी माताजी भी इसी शहर के रहने वाली थीं। आप लोग उन्हें बहुत अच्छा कहते हो। मैं भी अपनी जन्मदाता को एक महान देवी मानता हूँ, जिसने मुझे जबानी तो कुछ शिक्षा नहीं दी। उन्हें मौत ने अवसर ही नहीं दिया, मगर उनके खून की ज्वाला मेरे मन में जोत बनकर मौजूद है। मैं आपको भी माँ कहकर बुलाता हूँ, अपनी मां को याद करते हुए। कौशल्या (मेरी साली) उन दिनों छोटी सी थी। मैंने कहा- यह बड़ी होगी, जब आप इसका ब्याह करेंगे, तब आपको फैसला करना होगा कि मेरा कौन सा जँवाई अच्छा है। ईश्वर का धन्यवाद करो, हमें तो अब बस यही आशीर्वाद की जरूरत है, वह देती रहना। आपको बेटी की ठण्डी हवा सदा गुदगुदाती रहेगी।

मरी रोड़ पर हर साल एक मेला लगता था- बटी अमाम। वहाँ एक दरगाह थी। उस पर साल में एक बार मेला होता। तकरीबन हिन्दोस्तान के हर हिस्से से गायिका आती थी। मेला एक हफ्ते तक चलता था। मैं और रघुनाथ वहाँ जाया करते थे। मैं वहाँ तीन साल गया। रघुनाथ फिर भी जाता रहता था। वहाँ अमीर जमीदारों या खान लोगों के बड़े-बड़े शामयाने लगे होते। पूरा स्टाफ साथ होता, खानसामा लोग, चौकीदार, सफाई करने वाले, पूरा इंतजाम होता और पूरा एक खेमों का शहर लगता। पूरी रात गानों का प्रोग्राम चलता रहता। हर गायक का समय निश्चित हो जाता। समय पर उसने आना होता, अगर दूसरी कोई गाना पेश कर रही है, तो उसका कितना भी अच्छा प्रोग्राम क्यों न हो, खत्म हो जाता। बस जैसे सारी रात नोटों की बारिश होती। जिस डेरे में हम जाते थे, वह रघुनाथ का अच्छा वाकिफ था। हमें बैठने के लिए आगे जगह मिल जाती। रात को चायपत्ती सब्ज कहवा पीने के लिए भी मिल जाती। वहाँ की हालत देखकर और गाँव के गरीब लोगों को देखकर बहुत हैरानी होती कि ये लोग लाखों रुपया यहाँ बरबाद कर रहे हैं और गाँव के किसानों की हालत, जिनको पेट भर रोटी नहीं मिलती, का ध्यान उन्हें कभी नहीं आता?

सूबा चुनाव में सुर्खपोश (कांग्रेस) जीत कर अपनी वजारत बनाने में सफल हुये। डाक्टर खान साहब वजीरेआला (मुख्यमंत्री) थे। डा0 साहब खान अब्दुल गफ्फार खान के बडे़ भाई थे। भगतराम ने गलाढेर में किसान आन्दोलन शुरू करने का फैसला किया। मकसद यह था कि गाँव के किसानों को जमीनें मौरूसी (बाप दादा की) हैं। यह इनकी अपनी मिलकियत होनी चाहिए। नवाब टोरू का इसमें क्या दखल है? इस तहरीक को चलाने के लिए भगतराम ने कांग्रेस सोशलिस्ट विंग के साथ मेलजोल किया। पहले दो चार बार उसने गाँव में मीटिंग की और फिर बाद में जलसे शुरू कर दिये। लोगों ने तो उसका पक्ष लेना था और गाँव से बाहर के लोग जो अच्छे बोलने वाले थे, उन्होंने जलसे में खूब भाषण दिये कि ये जमीनें और मकान ये हमारे अपने हैं। तुम लोगों ने नवाब टोरू के किसी कारिन्दे को कुछ लेना देना नहीं है। हमारी एजीटेशन (आन्दोलन) पुरअमन (शान्तिपूर्ण) होगी और हम अपने हक के लिए लड़ेगें।

भगतराम ने कहा- मेरी गिरफ्तारी के बाद मौलाना अब्दुर्रहीम पापुंजई, कामरेड रामसरन नगीना, कामरेड फकीर चन्द, मौलाना मुकरम शाह यह लोग गिरफ्तारी के लिए आयेंगे। बाद में जैसे भी आगे प्रोग्राम बनेगा यह लोग सोच लेंगे। गाँव में दफा 144 लग गया है, जलसे, जुलूस की पाबन्दी है, बाहर से किसी का आना भी मुश्किल है। गिरफ्तारियों का सिलसिला भी तेज होगा। नवाब ने भी अपना पूरा जोर लगाना है। इसके बावजूद भी हमने आन्दोलन जारी रखना है। तुम्हारे जिम्मे जो काम है वह यह है कि रोजाना की रिपोर्ट दो। वह लिखकर रिशबकी में वारिस खान तक पहुँचा दिया करो। आगे वारिस खान उसे प्रेस के लिए भिजवाता रहेगा। यह बहुत जरूरी है। जब तक प्रेस में हालात ऐसे रहेंगे हमारी एजीटेशन जोर पकड़ती जायेगी।

और वैसा ही हुआ। गिरफ्तारियों का चक्कर चला और बाहर से लोगों के आने पर रोक लग गई। एक बार डा0 खान साहब आये। उन्होंने भगतराम से कहा – भई अपनी वजारत में तुमने यह कैसा आन्दोलन चला लिया। यह ठीक है कि आपका काम दुरुस्त है, फिर भी हमारे लिए अमन बनाये रखना बहुत जरूरी था। भगतराम ने डा0 खानसाहब को जवाब दिया कि अब तो यह एजीटेशन रुक नहीं सकती। मैंने सुर्खपोशों या कांग्रेस वालों से बात नहीं की। किसान एजीटेशन के बारे में पूरा सलाह मशविरा सोशलिस्ट पार्टी से की है और उन्होंने मुझे हिमायत का यकीन दिलाया है और यह भी फैसला हुआ है कि यह समय बहुत अच्छा है। हमारी पालिसी कोई कांग्रेस से अलग नहीं है। फिर जब आपकी सरपरस्ती भी होगी, तो यह समय बहुत बेहतर है। फतह हमारी यकीनी होगी, हमें तो जनता को जागृत करना है और उन्हें अपने हक के लिए तैयार करना है। बाकी हक दिलवाने का काम तो आपने ही करना है, चाहे कानून में चेंज करके या फिर असेम्बली से पास करके, करना तो आपने ही है।

भगतराम की गिरफ्तारी के बाद मौलाना अब्दुल रहीम पापुंजई आये, गिरफ्तारी दी। फिर उसके बाद अकबर शाही मियां, रामसरन नगीना, मौलाना मुक्करम शाह, कामरेड रामकिशन गिरफ्तार हुये और इस तरह सिलसिला चलता रहा। लेकिन अब हुकूमत की तरफ से और नवाब तोरू के जोर देने से धारा 144 पर ज्यादा सख्ती से अमल शुरू हुआ। बाहर से आने वालों को बाहर ही गिरफ्तार कर लिया जाता। मैंने प्रेस को हालात भिजवाने के लिए दो आदमियों से मशविरा किया, जो कि बाहर सुबह-सुबह अण्डे खरीदने के लिए गाँव-गाँव जाते थे। उनके पास खाली टोकरियां होती थीं, जिसमें नीचे थोड़ा फूस और ऊपर से टाट लगा होता था, ताकि अंडे टूटें नहीं। मैं दिनभर की पूरी रिपोर्ट रात को लिखता और सुबह-सुबह उनको समझा देता कि यह कागज टोकरी में फूस के नीचे रख दिया करें। अगर पुलिस वाले रोकें या पूछें तो टोकरी को उलटा किया करें कि हम गरीब लोग गाँव-गाँव से अंडे लेकर बेचते हैं, सो तुम्हें जाने देंगे। रिशबकी में यह कागज वारस खान को पहुँचा दिया करें।

(जारी…)

राधा कृष्ण कपूर

जन्म - जुलाई 1912 देहांत - 14 जून 1990

2 thoughts on “स्मृति के पंख – 15

  • विजय कुमार सिंघल

    आन्दोलन चलाने वाले भगत राम जी की बुद्धिमानी को जानकर दंग रह गया. प्रेस में प्रचार हेतु समाचार पहुँचाने का क्या विलक्षण प्रबंध किया था. पढ़कर मजा आ गया.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    यह एपिसोड भी अच्छा लगा . किसान शुरू से ही तकलीफें उठाते आए हैं . सिआसी सर्गर्मिआन भी समझ आई .

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