ग़ज़ल
तेरे शाने को भूल जाऊँ मैं !
इक ज़माने को भूल जाऊँ मैं !
क्या-क्या भूलूँ मैं ! बेवफाई, या,
दिल लगाने को भूल जाऊँ मैं !
मेरी बातों पे बेवजह इक दिन,
रूठ जाने को भूल जाऊँ मैं !
जिससे पैदा है वजहे-हिज्राँ आज,
उस बहाने को भूल जाऊँ मैं !
रक्स करती है जिसपे मौजे-हयात,
उस तराने को भूल जाऊँ मैं !
‘होश’ इक जाँनिसार आशिक को,
आजमाने को भूल जाऊँ मैं !
— मनोज पाण्डेय ‘होश’
शाना – कंधा; वजहे-हिज्राँ – विरह का कारण
रक्स – नृत्य ; मौजे-हयात – जीवन की लय
जाँनिसार – जान न्यौछावर करने वाला)
धन्यवाद
बहुत खूब , ख़ास कर जो लफ़्ज़ों के अर्थ लिख दिए उस से मज़ा आया .
वाह वाह ! बहुत खूब !!