गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

तेरे शाने को भूल जाऊँ मैं !
इक ज़माने को भूल जाऊँ मैं !

क्या-क्या भूलूँ मैं ! बेवफाई, या,
दिल लगाने को भूल जाऊँ मैं !

मेरी बातों पे बेवजह इक दिन,
रूठ जाने को भूल जाऊँ मैं !

जिससे पैदा है वजहे-हिज्राँ आज,
उस बहाने को भूल जाऊँ मैं !

रक्स करती है जिसपे मौजे-हयात,
उस तराने को भूल जाऊँ मैं !

‘होश’ इक जाँनिसार आशिक को,
आजमाने को भूल जाऊँ मैं !

मनोज पाण्डेय ‘होश’

शाना – कंधा; वजहे-हिज्राँ – विरह का कारण
रक्स – नृत्य ; मौजे-हयात – जीवन की लय
जाँनिसार – जान न्यौछावर करने वाला)

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • Manoj Pandey

    धन्यवाद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब , ख़ास कर जो लफ़्ज़ों के अर्थ लिख दिए उस से मज़ा आया .

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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