हे कृषक तेरा पसीना लहू बनकर झूमता है,
शक्ति , शौर्य, प्रेम से हर जिगर को चूमता है
रात -दिन जो एक करता अन्नदाता है व्यथित
तंगहाली जिंदगी में मौत से नित जूझता है
— राजकिशोर मिश्र [राज]
हे कृषक तेरा पसीना लहू बनकर झूमता है,
शक्ति , शौर्य, प्रेम से हर जिगर को चूमता है
रात -दिन जो एक करता अन्नदाता है व्यथित
तंगहाली जिंदगी में मौत से नित जूझता है
— राजकिशोर मिश्र [राज]
फ़रेबी लोग ऐसे है, कि पल-भर में बदल जाते जिगर जिनके बने पत्थर, भला कैसे पिघल जाते महक पाई सुमन से तो, करों में भी चुभे कांटे मिले कोई गुलिस्तां भी, बिना देखे निकल जाते ।
ढ़ाई आखर प्रेम है, नारायण का धाम कारीगरी कुशल लिए, मंदिर मन घनश्याम स्वामीनारायण प्रभों, महिमा अधिक विशाल जयकारा लगता रहे, बापा स्वामी नाम॥ महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को समर्पित जन-जन की आवाज सुनो क्यों उसी द्वंद को भूल गये लिखा रक्त से जिसे समय ने उसी छंद को भूल गए हां जिस ने इतिहास रचा था भारत का ही बेटा था क्यों हाकी के उस जादूगर ध्यानचंद को भूल गये — मनोज श्रीवास्तव
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बढ़िया मुक्तक !
आदरणीयश्री विजय कुमार सिंघल जी त्वरित हार्दिक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया एवम् धन्यवाद