प्रभु का हाथ
मैं
नित प्रात:काल
जितनी श्रद्धा से,
मंदिर जाता हूँ,
उतना ही मेरा अन्तर्मन
खिल जाता है,
जितना मैं प्रभु चरणों में
शीश नवाता हूँ,
उतना ही मेरा मस्तक
ऊंचा उठ जाता है,
जितना मैं प्रभु आगे
विनती में हाथ जोड़ता हूँ
दया भावना में मेरा हाथ
उतना ही खुल जाता है,
मैं जब भी प्रभु मंदिर में
थोड़ा सा प्रसाद चढ़ाता हूँ,
मेरा घर का कोना कोना
धन धान्य से भर जाता है, ,
मेरे प्रभु स्तुति में बोले
भक्ति भावना के दो शब्दों से,
मेरे मुख से निकली वाणी में
कितना मिठास उभर आता है,
जबसे मैंने अपना यह सारा जीवन
प्रभु की सेवा में लगाया है,
मैंने जीवन में हर कठिन समय में
प्रभु का हाथ सर पर हाथ पाया है ,
१६/५/२०१५ जय प्रकाश भाटिया
बढ़िया ! यह अहसास कि हमारे सिर पर प्रभु का हाथ है हमें आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त है. ऐसा ब्यक्ति जीवन में कभी निराश नहीं हो सकता.