कविता

बिटिया.,. माँ.,. बिटिया

मीन मचली
तपती रेत पर
दशा थी माँ की
.
जैसे जैसे पढ रही हूँ
सीख रही हूँ लिख रही हूँ
वैसे वैसे एस पा रही हूँ
पलट कर देखती हूँ तो
एहसास हो रहा है
सारे के सारे नो करने
लायक ही थे पहले वाले
आप प्यार में कमजोर होती
तो अन्याय होता हमारे साथ
हँसी के पात्र ही होता लेखन
परिपक्व अभी भी नहीं है लेकिन
ना से हाँ है पहला पायदान है चलेगा
है न माँ
शीतल जल में डूबकी लगाई माँ बिटिया की बातें सुन
माँ को याद आई एक कहानी
एक चोर को जब सजा सुनाई गई तो वो उस सजा को अपनी माँ को देने की मांग की क्यों कि पहली चोरी पर उसकी माँ उसे सजा दी होती तो आज यहाँ खडा नहीं होता
धन्यवाद बिटिया ….. लव यू .,.लव यू .,.माँ दिल से बोली …..
.
बिटिया खुद एक माँ होती है
एक माँ दूसरी माँ को गलत
कभी नहीं समझ सकती है ।

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “बिटिया.,. माँ.,. बिटिया

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर कविता !

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