जिस थाली में खाते है सब..
बात पते की बतलाता हूं,
जिस पर मुझको खेद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
ढोंगी क्या-पाखण्डी क्या,
ये अभिनेता है जोर के,
करते है सब तरफ दलाली,
खाते पैसे चोर के,
नेता पाई-पाई दबा के रखते सारे भेद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
दूध रंग की गाड़ी में ये,
लाल निगोड़े डोलते,
काले मन से धवल टोपियां,
घी-शक्कर सी घोलते,
चिकनी-चुपड़ी बातें, इनकी मानसिकता कैद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
वादों की भरमार लिए ये,
घर-घर जब-जब ताकते,
वोटों की खातिर ये बगलें,
एक-दूजे की झांकते,
मतदाताओं से ज्यादा ये नमक-हराम मुस्तैद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
हमने ही मतदाता प्यारे!
इनको शीश बिठाया है,
कुछ लालच के वशीभूत,
अपना ईमान गंवाया है,
हम ही इसकी दवा ‘प्रजापति’
हम ही इसके वैद है,
जिस थाली में खाते है सब,
उस थाली में छेद है..!!
वाह बहुत खूब
धन्यवाद #राज भाईसाहब
बहुत अच्छा गीत ! इस देश में बहुत से नमकहराम हैं जो जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं. अपने उनको बेनकाब कर दिया है.
धन्यवाद बड़े भाईसाहब