गीतिका
कब से तुम्हे निहार रही हूँ नयन उठाकर देखो तो,
मै खारा समुद्र पी जाऊं प्राण अगर तुम हँस दो तो
आओ सेतु रचें पलकों से जो टूटे मन को जोडे,
अश्रु-बिंदु की जलधारा है,इसको अँजुरी में लो तो
प्रीति छुपी मन के भीतर जो, तुमसे मैं बतला न सकी
प्यासे अधरों की भाषा को एक बार तुम पढ़ लो तो
नहीं चाहिए धन अरु वैभव,दे दो थोड़ा प्यार मुझे,
अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दूं एक बार तुम कह दो तो
नया उजाला लेकर आई सूरज की स्वर्णिम किरणें,
क्षितिज पार उड़ चलें धरा से साथ अगर तुम दे दो तो
— लता यादव
achchi gazal , prayaas jaari rakhiye
बहुत बढ़िया गीतिका
बहुत शानदार ग़ज़ल !
sundar