गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

11303542_904284856302272_1773615289_nकब से तुम्हे निहार रही हूँ नयन उठाकर देखो तो,
मै खारा समुद्र पी जाऊं प्राण अगर तुम हँस दो तो

आओ सेतु रचें पलकों से जो टूटे मन को जोडे,
अश्रु-बिंदु की जलधारा है,इसको अँजुरी में लो तो

प्रीति छुपी मन के भीतर जो, तुमसे मैं बतला न सकी
प्यासे अधरों की भाषा को एक बार तुम पढ़ लो तो

नहीं चाहिए धन अरु वैभव,दे दो थोड़ा प्यार मुझे,
अपना सब कुछ तुम्हें सौंप दूं एक बार तुम कह दो तो

नया उजाला लेकर आई सूरज की स्वर्णिम किरणें,
क्षितिज पार उड़ चलें धरा से साथ अगर तुम दे दो तो

लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है

4 thoughts on “गीतिका

  • प्रीति दक्ष

    achchi gazal , prayaas jaari rakhiye

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    बहुत बढ़िया गीतिका

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत शानदार ग़ज़ल !

  • अरुण निषाद

    sundar

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