आशा
आपसे मिले तो आशा हुई |
बिछड़े तो फिर निराशा हुई |
लेकिन हाँ , एक बात तो हुई |
पहले वाली ख़ुशी फिर से मिल गयी |
भले एक दो पल के लिए ही |
आपसे मिल कर ख़ुशी तो हुई |
आप भी उस दिन के इंतजार में थी |
कब हो मुलाकात तुमसे , बेचैन थी |
फिर तो वही हुआ जो होना था |
और क्या ,फिर से हम दोनों को मिलना था |
शुक्रगुजार करू मैं ईश्वर की |
हमे मिला दिए जिनसे मिलना था |
निवेदिता चतुर्वेदी
बहुत अच्छी कविता है.
बहुत सुन्दर !
dhanybad