लघु कथा : सूखा पेड़
दरवाजे पर दस्तक हुई. “कौन आया होगा — अभी तो सुबह भी नहीं हुई ” आँखें मलते हुए चादर हटा कर उठी. दरवाजा खोला. “अरे यह क्या, कोई भी नहीं ” बंद करने ही लगी थी कि फिर दस्तक हुई एक काँपता हुआ हाथ आगे बढ़ा- “बेटी, एक रोटी मिलेगी ?”
गौर से देखा, 70-72 वर्ष के एक बुजुर्ग सामने खड़े थे. मांगने के तरीके से लगा भिखारी नहीं हैं संभ्रात लगे, पूछा- “रोटी —इतनी सुबह? ”
ठंडी सांस लेकर बोले- “उसे चाहिए, मर जाएगी, भूखी है और बीमार भी ” बाहर नजर घुमाकर देखा -गेट के पास कोई गठरी की तरह पड़ा था
प्रश्न सूचक नजर उनके चेहरे पर गड़ा दी- “मेरी पत्नी है —- रात को बेटे ने बेघर कर दिया.”
मैने उन्हें अन्दर आने को कहा और स्वयं रसोई में जाकर उनके लिए नाश्ता बनाने लगी. मुन्ना उठ गया था और बुजुर्ग की गोद में खेल रहा था
मन में एक विचार कौंध गया. ‘यदि बड़ा होकर मुन्ने ने भी —?’
सूरज की स्वर्णिम किरणें घर में उजाला कर रही थी, बाहर सूखे वृक्ष पर दो पक्षी बैठे थे, एक दम उदास. उन बुजुर्ग दम्पति की तरह मेरी आँखों से दो मोती टपक पड़े.
लता यादव
लता जी , भाग्य को जानना बहुत मुश्किल है . कभी कभी जिंदगी में ऐसा हो जाता है कि जो बच्चे अछे समझते थे वोह दुःख देते हैं लेकिन इस के विपरीत जिन पर आशा रखना असंभव लगता था वोह साथ देते हैं . बहुत बेटा अच्छा होता है लेकिन उस की बीवी ऐसी होती है कि बेटा बीच में फंस जाता है . आप की लघु कथा में भी एक भय सा है कि अगर उस के बेटे ने भी ऐसा किया ?
सुसंस्कार सदैव सुख प्रदान करता है , उसकी डाली मे सुखमय भविष्य के फल आच्छादित होते है //
अच्छा सन्देश देती हुई लघुकथा !