मुक्तक/दोहा

दो मुक्तक

आ मेरी ग़ज़ल तुझे प्यार दूं
नया साज दूं नया राग दूं
तुम बंसी मेरी बन जाओ
अपने स्वर तुम पर साध दूं

दिल ये मेरा अब तुम्हारा हो गया
जब से कश्चित इशारा हो गया
मैं भटकता राह में था दर-बदर
तुम मिले मुझको सहारा हो गया

अरुण निषाद 

डॉ. अरुण कुमार निषाद
निवासी सुलतानपुर। शोध छात्र लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। ७७ ,बीरबल साहनी शोध छात्रावास , लखनऊ विश्वविद्यालय ,लखनऊ। मो.9454067032

3 thoughts on “दो मुक्तक

  1. dhanyawad sir ji…………..sadar pranam………….

  2. बहुत अछे लगे .

  3. अच्छे मुक्तक !

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