कविता

चक्रव्यूह !

 

इस जिंदगी का क्या भरोसा

कब शाम हो जाय ,

भरी दोपहरी में कब

सूरज डूब जाय ….

उम्मीद के पतले  सेतु के सहारे

मकड़ी सा  आगे कदम बढ़ा रहे है

और खुद के बुने जाले में फंसकर

छटपटा रहे है |

 

क्या यह मेरा भ्रम है ?

कि जाले मैं ने बुने हैं ,या

मुझे बनाने वाले ने

मेरी क्षमता की परिक्षण हेतु

मुझे अभिमन्यु बना कर

इस चक्रव्यूह में डाला है ?

 

मुझे अभिमन्यु नहीं

अर्जुन बनना पड़ेगा

चक्रव्यूह को तोड़कर

बाहर निकलना पड़ेगा

मुझे बनाने वाले के सामने

अपनी योग्यता का प्रमाण देना होगा |

 

मेरा ज्ञान सिमित है

ज्ञान-क्षितिज के पार

है गहन अँधेरा

आँख खुली हो या बंद

कुछ नहीं दीखता, सिवा अँधेरा |

यही अँधेरा मेरी अज्ञानता है

हर इन्सान इसी अन्धकार में भटक रहा है

ज्ञानियों ने ज्ञान के प्रकाश से

बाहर निकले हैं अन्धकार से |

अँधेरी राह में यात्रा कितनी भी

दुर्गम क्यों न हो,

चीरकर उस अँधेरे को

मुझे भी आगे जाना होगा

हर हालत में मुझे

इस परीक्षा को पास करना होगा |

© कालीपद “प्रसाद”

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !

2 thoughts on “चक्रव्यूह !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

  • गुंजन अग्रवाल

    umda kawita

Comments are closed.