सिलसिला
तुम्हारी लबों से आई आवाज़ों में मगरूर होता गया।
जब – जब अदाओं को देखा तो सुरूर चढता गया।
मुलाकातों का सिलसिला जैसे-जैसे आगे बढता गया
हम तुम्हारी तरफ़ इस कदर खिचा हुआ चला आया
हर नखरे हमें यु हर रोज दिल को याद दिलाता रहा
बलखाते हुए संजीदा बदन हमेशा याद आता रहा
कोशिश किया जितना तुम्हें नजरों से दूर हटाने की
महका-महका तेरेतन का हर कतरा याद आता रहा।
तेरी मुस्कूराती अदाओं में बहकता हुआ चला आया
तेरी लहराती जुल्फों में उलझता हुआ चला आया
तेरी मासूम निगाहों का असर मुझमें ऐसा होता गया
कि ‘रमेश’ अपने को रोकने में असफल पाता गया।
kya baat laajawaab
हम तुम्हारी तरफ़ इस कदर खिचा हुआ चला आया …..is line me kuch sudhar apekshit hai ../..
जी जरूर धन्यवाद!