ग़ज़ल
ज़िन्दगी मानो सफर है
ऊँची नीची सी डगर है ।
पाँव में हो थकन कितनी
उसे चलना ही मगर है ।
नज़ारे जो देखता है
हमारी उस पर नज़र है ।
रहगुज़र है ज़िन्दगी तो
राह पर मेरी गुज़र है ।
ज़रा तुम हुशियार रहना
बना रहज़न राहबर है ।
जो चैन मेरा लूट भागा
दिल उसी का मुन्तज़िर है ।
अंग रक्षक साथ ले लो
राह आगे पुर ख़तर है ।
नाम जिस का है सुधेश
देखना कैसा बशर हे ।
–सुधेश
वाह वाह ! बेहतरीन ग़ज़ल !